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________________ १४० सूत्रकृतासूत्र मूलम्-आउक्खयं चेवं अबुज्झमाणे, ममाति से साहसकारि मंदे। . अहोयराओ परितप्पमाणे, अद्वेसु मूंढे अजरामरेव्व॥१८॥ छाया-आयुःक्षयं चैमाऽबुध्यमानो, भमेति स साहसकारी मन्दः । . . ___अहनि च रात्रौ च परितप्यमानः, अर्थेषु मूढोऽजरामर इव ॥१८॥ अन्वयार्थः-(आउक्वयं चेव अबुज्झमाणे) आरम्भासक्तः पुरुषः आयुः क्षय आयुषो जीवनलक्षणस्य क्षयं-विनाशमबुद्धयमानोऽजानन् (भमाति से) ममेति इदं मे अहमस्य इत्येवं वक्ता ममत्ववानित्यर्थः सः (माहसकारिमंदे) साहसकारी' 'आउक्खयं' इत्यादि। ' शब्दार्थ--'आरक्खयं चेव अवुज्झमाणे-आयु क्षयं चैवाऽयघुध्य मानः' आरम्भमें आसक्त पुरुष आयुका क्षघ को नहीं जानता है 'ममा तिले-ममत्ववान्' परंतु वह पुरुष वस्तुओं पर अपनी पता रखता हुआ वह 'साहसकारि संदे-साहसलारिमन्द:' पाप कर्म करता ही रहता है और 'अहोय रामओय परितप्पमाणे-अहनि च रात्रौ च परितप्यमान' दिन रात चिंतामग्न होकर दुःख का अनुभव करता है एवं 'असुअर्थेषु' धन धान्य आदिमें 'अजरामरेन्च-अजरामरवत्' अपने को अजर एवं अमर समझना हुआ 'मूढे-मूढः' धन आदि में आसक्ति वाले बने रहते हैं ॥१८॥ ___ अन्वधार्थ--अपनी आयु के क्षय को नहीं जानता हुआ ममतावान् पुरुष साहसकारी होता है। वह दिन रात संताप का अनुभव करता 'आउखयं त्या शहाथ-'आउक्खय चेव. अबुज्ज्ञमाणे-आयुःक्षय चैवाऽवबुध्यमानः' भार. समां भासत मेव। ५३५ मायुष्यना क्षय आता नथी. 'ममातिसे-ममत्ववान्' ५२ त ५३५ वस्तुमा, ५२ पोतानी ममता राभान 'साहसकारिमंदेसाहसकारिमन्द.' ५।५४ ४ ४२२७, छे. मने 'अहोय रामओय-परीतप्प. माणे अनि च रात्रौ च परितप्यमान.' तसि यिंता युद्धत मनाने । हुमने। अनुमप ४२ . तमा 'षट्रेसु-अर्थे पु' धन धान्य विमा 'अजरामरेव्ध अजरामरवत् पाताने म०४२ मने सभ२. भानीने 'मूठे-मूढ' । विगेरेभा આસક્તિ વાળો બની રહે છે ૧૮ । मन्वयार्थ --पोतानी मायुध्यना' क्षयने न तो ममतावाणे ५३५ સાહસિક થાય છે. તે રાત દિવસ સંતાપયુક્ત બનીને ધન, ધાન્ય વિગેરે
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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