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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थ:--'पमायं कम्म मासु' प्रमाद-मधविषयकपायादिकं कर्म आहुः कथयन्ति तीर्थ करादयः 'तहा अप्पमायं अबरं' तथा-अप्रमादम् अपरम् अकमें बाहु। 'तभावादेसओ वा वि' तद्भाबादेशतः तयोः-बालवीर्यपण्डितवीर्ययोः सत्वादेव 'चालं पंडियमेव वा' वालवीय पण्डितवीर्य वा भवतीति ॥३॥ टीका-'पमार्य' प्रमादम्-प्रकर्पण माद्यन्ति शुभानुष्ठानरहिता भवन्ति जीया येन स प्रमादो मधादिः। उक्तञ्च कारण में कार्य का उपचार करले कर्म को ही बल-दीय कहा गया है, अथ प्रमाद को ही 'कर्म' कहते हैं। यहां भी कारण में कार्य का उपचार से प्रमाद को कर्मत्वसे समझना चाहिए। सूत्रकार यही कहते हैं-'पमायं कम्ममासु' इत्यादि । शब्दार्थ-'पमायं कम्ममालु-प्रमादं कर्म आहु।' तीर्थंकरोंने समादको कर्म कहा है 'ता अप्पमायं अवरं-तथा अप्रमादम् अपरम्' तथा अप्रमाद को अकर्मकहा है 'तभावादेसओ वावि-तदावादेशतोवाऽपि' इन दोनों की सत्ता से ही 'वालं पंडियमेव वा-यालं पण्डितमेवया' पालवीर्य तथा पण्डितवीर्य होता है ॥३॥ :- अन्वयार्थ-तीर्थंकर आदि महापुरुष मध आदि प्रमाद को कर्म 'कहते हैं तथा अप्रमाद को अकर्म कहते हैं। प्रमाद के सद्भाव से बालवीर्य और अप्रमाद के होने से पण्डितवीर्य कहा जाता है ॥३॥ * કારણમાં કાર્યને ઉપચાર કરીને કર્મને જ બાલવીર્ય કહેવામાં આવેલ છે, હવે પ્રમાદને જ “કર્મ કહે છે.! આમાં પણ કારણમાં કાર્યને ઉપર 1 થવાથી પ્રમાદને કર્મપણથી સમજવો જોઈએ સૂત્રકાર એજ કહે છે કે" 'पमायं कम्म मासु' त्यात ----- --'पमायं कम्म माइंसु-प्रमाद कर्म आहुः' तीर्थ से प्रभाहने"म छे. 'तहा अप्पमाय अपरं-तथा अप्रमादम् अपरम्'. तथा मप्रभाहने भी छे. 'तभावादेखओ दावि-तद्भवादेशतो वापि' मा मन्ननी सत्ताथी ४ 'पालं पंडियमेव वा-बालं पंडितमेव वा' मासकीय तथा पतिवाय थाय छे. ॥3॥ . . અન્યૂયાર્થ-તીર્થકર વિગેરે મહાપુરૂષે મદ્ય વગેરે પ્રમાદને કર્મ કહે છે. તથા અપ્રમાદને અકર્મ કહે છે. પ્રમાદના સદૂભાવથી બાલવીર્ય અને અપ્રમાદથી પંડિતવીર્ય કહેવામાં આવે છે. પાકા : -
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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