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________________ ५३० सूत्रकृताङ्गसूत्रे 'सुम्मा सभा व' सुधर्मा सभा इव वहुक्रीडास्थानैर्युक्तत्वात् । 'जह' यथा -सन् धम्मा' सर्वेऽपि धर्माः 'निव्वाणसेड।' निर्वाणश्रेष्ठा मोक्षप्रधाना भवन्ति, कुप्राचनिका अपि निगफलकमेव स्वदर्शनं ब्रुवते' तथा 'णायपुत्ता' ज्ञातपुत्रात् 'परं' परमधिकम् 'नाणी' ज्ञानी नास्ति सर्वथैव हि भगवान् अपरज्ञानिषोऽधिकज्ञानवान् अस्afa ||२४|| मूलम् - पुढोवमे धुणइ विगयगेही न सेणिहिं कुंवइ आसुँपन्ने । तैरिडं समुदं व महामत्रोघं अभयंकरे वीर अनंतचक्खू | २५ | छाया - पृथिव्युमो धुनोति विगतगृद्धिः, न सन्निधिं करोत्याशुप्रज्ञः । तरित्वा समुद्रमिव महाभवधम्, अभयङ्करो वीरोऽनन्तचक्षुः ||२५|| जैसे सभाओं में सुधर्मा सभा श्रेष्ठ है, क्योंकि वह अनेक क्रीडास्थानों से युक्त है । अथवा जैसे सभी धर्म मोक्ष प्रधान हैं, क्योंकि कुप्राचचनिक भी अपने दर्शन को निर्वाण रूप फल देने वाला ही कहते हैं, इसी प्रकार ज्ञातपुत्र से अधिक ज्ञानी कोई नहीं है अर्थात् अन्य ज्ञानियों से वही उत्कृष्ट ज्ञानी हैं ||२४|| 'पूढोवमे' इत्यादि । शब्दार्थ - 'पुढो मे - पृथिव्युपम:' भगवान् महावीरस्वामी पृथ्वीके समान सब प्राणियों के आधार भूत है 'धु गइ - धुनोति' तथा वे आठ प्रकार के कर्ममलों को दूर करने वाले हैं 'विगयगेही - विगतगृद्धिः, भगवान् चाह्य और आभ्यन्तर वस्तुओं में वृद्धि - आमक्तिरहित है ' आसुवन्ने - आशुप्रज्ञ. ' वे शीघ्रवृद्धि वाले हैं 'ण संनिहिं कुव्वइ-न જેમ સલ એમાં સુધર્માં સભા શ્રેષ્ઠ છે, કારણુ કે તે અનેક ક્રીડાસ્થાનાથી યુક્ત છે, અથવા જેમ સઘળા મેાં મેાક્ષપ્રધાન છે, કારણ કે કુંપ્રાવનિકે પણ પેાતાનાં દર્શનને નિર્વાણુરૂપ ફલ પ્રદાન કરનાર જ કહે છે, એજ પ્રમાણે જ્ઞાતપુત્ર કરતાં અધિક જ્ઞાની કાઈ નથી. તેએ જ સર્વોત્કૃષ્ટ જ્ઞાની છે ૫૨૪ા देव मे " धत्याहि <1 शण्डार्ध--' पुढो मे - पृथिव्युपमः ' लगवान् महावीरस्वामी पृथ्वीसरीया बघा प्रालियोना आधारभूत हता 'धुगइ - धुनोति' तथा तेथे आहे प्रारना उभनि हरवावागा छे 'विगयगेही- विगतगृद्धि " लगवान् मा. अने माल्यन्तर वस्तुयोभां वृद्धि - आसक्ति रहित हता 'ओसुपन्ने - आशुप्रज्ञः ' तेथे।
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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