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________________ समयाथैबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.६ उ. १ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ५३१ ____ अन्वयार्थः --'पुढोवमे पृथिव्युपमः-पृथिवीपत्तनगिनामाधारी महावीरस्वामी 'धुणइ' धुनाति-अपनयत्यष्टमकारकं कर्म 'विगयगेही' विगतमृद्धिः-बाबाभ्यन्तरवस्तुविषयकगृद्धिमारहितः, 'आसुपन्ने' आशुप्रज्ञा-सर्वत्र सदोपयोगात् 'ण संनिहं कुबई' न सन्निधिं करोति-घृतगुडादिकम् 'समुदं व समुदवत् (महाभवोघ) महभवौघम् चातुर्गतिकसंसारसागरम् (तरिडे) तरित्वा-पारं कृत्वा मोक्ष माप्तः (अभयं करे) प्राणिनामभयङ्करः (बोरे) वीरो भगवान (अणतचक्खू) अनन्तचक्षुः-अनन्तज्ञानीत्यर्थः ॥२५॥ . संनिधि करोति' वे धन धान्य तथा क्रोधादिका संपर्क नहीं करते हैं 'समुद्देव-समुद्रवत्' समुद्र के समान 'महाभवो-महाभवोघम्' महान संसारको 'तरिउ-तरित्या पार करके मोक्षको प्राप्त हुए हैं 'अभयंकरे-- अभयङ्करः' भगवान् माणियों को अभयकरनेवाले 'चीरे-वीरः' ऐसे भगवान् बर्द्धमान महावीर स्वामी 'अणंत चक्खू-अनंत चक्षुः' अनन्त ज्ञानवाले हैं ॥२५॥ ___ अन्वयार्थ--भगवान महावीर पृथिवी के समान समस्तप्राणियों के आधार हैं, आठ प्रकार के कर्मों को नष्ट करने वाले हैं, बाह्य एवं आभ्यन्तर वस्तुभों की गृद्धि से रहीत हैं, आशु प्रज्ञ अर्थात् सर्वत्र सर्वदा उपयोगवान् हैं, किसी भी वस्तु की सन्निधि न करने वाले हैं, समुद्र के समान महान् संसार को पार करके मोक्ष को प्राप्त हुए हैं, अभयंकर हैं और अनन्तज्ञानी हैं ॥२५॥ शी भुद्धि ता 'ण संन्निहिं कुबइ-न संनिधिं करोति' ते। धनधान्य तथा पाहिना स५४ ४२ता न ता 'समुद्देव-समुद्रवत्' समुद्रनी म 'महाभवो-महाभवोधम्' महान् स'सारने 'तरिउ-तरित्वा' पा२ ४शत भाक्षगमन ४यु तु. 'अभयंकरे-अभयङ्करः' लगवान प्रायुयाना मसय ४२वावा 'वीरे-वीरः' मेवा मवान् पद्धमान् महावीरस्वामी 'अणंतचक्खू-अनंतचक्षुः' अनतज्ञानवा छे. ॥२५॥ . . . સૂત્રાર્થ–ભગવાન મહાવીર પૃથ્વીના સમાન સમસ્ત પ્રાણીઓના આધાર છે, આઠ કર્મોને ક્ષય કરનારા છે, બાહ્ય અને આભ્યન્તર વસ્તુઓની વૃદ્ધિ (લાલસા) થી રહિત છે, આશુપ્રજ્ઞ છે એટલે કે સર્વત્ર સદા ઉપગવાન છે, કેઈપણ વસ્તુની સન્નિધિ (સંચય) કરનારા નથી, સમુદ્રના સમાન મહાન સંસાર પાર કરીને મોક્ષને પ્રાપ્ત કરનારા છે, અભયંકર અને અનન્ત જ્ઞાની છે. પાપા
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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