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________________ 22 सूत्रकृतास्त्रे ___ अन्वयार्थ:--(भो) भोः भोः शिष्याः (एए) एते पूर्वोक्ताः दण्डादिघात रूपाः परीपहोपसर्गाः (कसिणा फासा) कृत्स्नाः स्पर्शाः (फरुसा) परुपाः कठिनाः (दुरहियासया) दुरबिसह्याः दुःखेन सोढुं योग्याः एतानसहमानाः केचनलघुमतयः, (सरसविता) शरसवीता:-रणशिरसि शरताडिताः (हत्थी व) हस्तिन इच (कीया) क्लीवा-कातराः पुरुषाः (अवसा) अशाः परायचाः कर्माधीनाः गुरुकर्माणः (गिह) गृहं (गया) गताः गच्छंति परित्यज्य साधुषेशम् । (त्ति बेमि) इति ब्रवीमि अहमिति ॥१७॥ ___टीका-गुरुरुपदिशति शिष्यान 'भो' भोः भोः शिष्याः। एते पूर्वोक्ताः दण्डादिधातादिरूपाः परीपहोपसर्गाः, 'कसिणा' कृत्स्ना -निखिला अपि परुपाः' कठिन 'दुरहियाला-दुरधिसह्याः' और दुःसह हैं 'सरसंवित्तीशरसंवीताः' बाणों से पीडिन 'हत्यी व-हस्तिन इच' हाथी के जैसे 'कीबा-लोबाः' नपुंसक पुरुष 'अवती-अवशा' घबराकर 'गिह-गृहम् ' करको 'गया-गताः' चले जाते हैं अर्थात् साधु वेश को छोडकर चले जाते हैं ॥१७॥ ___अन्वयार्थ--हे शिष्यो ! ये पूर्वोक्त लब स्पर्श अर्थात् परीषह और उपसर्ग कठोर हैं, दुस्सह हैं, इनको सहन न करते हुये कोई कोई लघु बुद्धि साधु, संग्राम के शीर्ष भाग में स्थित हस्ती के समान कायर एवं विवश होकर साधुवेश त्याग कर घरचले जाते हैं। ऐसा मैं कहता ॥१७॥ टीकार्थ-गुरु शिष्यों को सम्बोधन करके उपदेश करते हैं-हे अन्तेवालियो ? ये पूर्वोक्त दण्ड का आघात आदि परीषह और उपसर्ग रूप 38 'दुरहियासा-दुरधिसह्याः' भने म छ 'सरसंपित्ता-शरसंवीताः' मा। थी पीठत 'इत्यी व-हस्तिन इव' हाधीनी रेभ 'कीबा क्लीवा' नपुस ५३५ 'अवसा-अवगा.' गभराधन 'गिह-गृहम्' धे२ गया-गताः' याहया नय छ, અર્થાત્ સાધુવેશને છોડીને ઘેર જતા રહે છે. ૫ ૧ળા. सूत्राथ-डे शिष्य ! पूरित सघणा-२५-५शेष अने पसगाઘણા જ કઠેર-સ્સહ છે તેમને સડન ન કરી શકનારા કોઈ કેઈ અપરિક પકવ બુદ્ધિવાળા સાધુએ સંગ્રામને ખરે ઊભેલા હાથીની જેમ કાયર અને વિવશ થઈને સાધવેશને ત્યાગ કરીને ફરી સંસારમાં ચાલ્યા જાય છે. એવું (सुधा स्वामी सन २२॥ 'सारमा यादया जय ટીકાર્ય–સુધમ વામી પોતાના શિષ્યોને આ પ્રમાણે ઉપદેશ આપે છે હે તેવીઓ ! લાકડીના પ્રહાર આદિ પૂર્વોક્ત પરહે અને ઉપસર્ણ રૂપ સમસ્ત પર્ણો (અનુભ) ઘણા જ દુસ્સહ હોય છે. એવાં પરીષહે
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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