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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.६ उ. १ भगवती महावीरस्य गुणवर्णनम् ५०१ , अन्वयार्थ:--(आययाण) आयतानां-लम्बायमानानां पर्वतानां मध्ये (गिरिवरे) गिरिवर:-पर्वतश्रेष्ठः (निसह व) निषध इव प्रधानः (वलयायताण) वलयायितानां वर्तुलानां पर्वतानाम् (रुयए व) रुचकपर्वत इव (से?) श्रेष्ठः भगवानपि (तभोयमे) र दुपमः-तत्सदृशः (जगभूइपन्ने) जगभूतिप्रज्ञः-जगति सर्वातिशयबुद्धिवान् (मुणीण मज्झे) मुनीनां मध्ये वर्त्तते, एवं (पन्ने) प्रज्ञा:-तत्स्व. रूपज्ञाः (तमुदाहु) तं-भगवन्तमुदाहुः कथयन्तीति ॥१५॥ . ' . टीका-यथा-'आययाणं' आयतानां लम्वायमानानां पर्वतानां मध्ये 'गिरिवरे' गिरिवरः-पर्वतश्रेष्ठः 'निसह' निषयः-प्रधानः, यथा वा 'वलयायताणं' वलयावितानां-चतुलानां वलयसदृश वर्तुलानांपर्वतानां मध्ये 'रुयए' रुचका-दनामका पर्वत इत्र 'से?' श्रेष्ठ:-प्रधानः 'तभोक्मे तदुपमः, तस्य-पर्वतस्योपमा विद्यते यस्य रुचक पर्वत 'सेट्टे-श्रेष्ठः' श्रेष्ठ है 'जगभूपन्ने-जगत् भूतिप्रज्ञः' जगत् में अधिक बुद्धिमान् भगवान महावीर स्वामी की 'तमओयमेतदुपमः' 'वही उपमा है 'पन्ने-प्राज्ञः' बुद्धिमान पुरुप 'मुणीण मज्झे-मुनीनां मध्ये' मुनियों के मध्य में 'तमुदाहु-तमुदाहु. भगवान् को श्रेष्ठ कहते हैं ॥१५॥ . अन्वयार्थ-जैसे दीर्घाकर (लम्बे आकारवाले) पर्वतों में निषध पर्वत प्रधान है और वर्तुलाकार पर्वतों में रुचक पर्वत प्रधान है, उसी प्रकार समस्त मनियों में सर्वोत्तम प्रज्ञावान भगवान महावीरस्वामी सर्वोत्तम हैं, ऐसा वुद्धिमान् पुरुषों ने कहा है ॥१५॥ ____टीकार्थः-जैसे आयात अर्थात् लम्बे पर्वतों में गिरिवर निषध प्रधान है, या जैसे वलयाकार (गोल) पर्वतों में रुचक पर्वत श्रेष्ठ है, उसी प्रकार जगत में समस्त ज्ञानवानों में भगवान महावीर सर्वश्रेष्ठ -श्रेष्ठ श्रेष्ठ छ .'जगभूइ, पन्ने-जगत् भूतिप्रज्ञ.' गत्मा धारे मुद्धिमान् मग. वान् महावीर स्वाभीनी 'तओनमे-तदुपमः' मे १५॥ . 'पन्ने-प्राज्ञः' भुद्धिमान् ५३५ 'मुणीण मज्झे-मुनीनां मध्ये' भुनियानी मध्यभा 'तमुदाहुतमुदाहुः' लगवान श्रेष्ठ ४ छ. ॥ १५ ॥ સૂત્રાર્થ –જેવી રીતે દીઘકાર પર્વતમાં નિષધ પર્વત શ્રેષ્ઠ છે અને વર્તુળાકાર પર્વતેમાં જેમ રુચક પર્વત શ્રેષ્ઠ છે, એજ પ્રમાણે સમસ્ત મુનિએમાં સર્વોત્તમ પ્રજ્ઞાવાન મહાવીર ભગવાન શ્રેષ્ઠ છે, એવું બુદ્ધિમાનું પુરૂએ કહ્યું છે. જે ૧૫ -२म A° (aint) तामा गिरिवर नि१५ सवात्तम छ, અથવા જેમ વલયાકાર (વર્તુળાકાર) પર્વતેમાં સુચક પર્વત શ્રેષ્ઠ છે, એ જ
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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