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________________ - सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया--अपके प्रति मापन्ते प्रातिपथिकतामागताः । मतिकारगता एते य एते एवं जीविनः ॥९॥ अन्वयार्थः--(पडिपंथियमागया) प्रातिपथिकतामागता प्रतिपथः प्रतिक्ल त्वं तेन चरन्तीति प्रातिपथिकाः साधुविद्वेषिणस्तद्भावमागताः (अप्पेगे) अपि एके धर्मरहिताः (पडि भासंति) प्रतिभापते (जे एए) ये एते यतया (एवं जीविणो) एवं जीविनः (एए) एते (पडियारगया) प्रतिकारगमा प्रतिकारः-पूर्वकृतकर्मणोऽनुभवस्तं गताः प्राप्ता इति ॥९॥ टीका--'पडिपंथियमागया' प्रातिपथिकनामागताः, प्रतिकूलतां भाषन्ते ये ते मातिपथिकाः साधूनां विद्वेषकारकाः, तद्भावमागताः इति मातिपथिकता शब्दार्थ-'पडिपंथियमागया-प्रतिरधिकतामागताः' साधुजन के पी 'अप्पेगे-अपिएके' कोई कोई 'पडिभासंति-प्रतिभाषन्ते' कहते हैं कि "जे एए-थे एते' जो ये लोग एवं जीविणो-एवं जीविनः' इस प्रकार भिक्षावृत्ति ले जीवन धारण करते हैं 'एए-एते' ये लोग परियारगताप्रतिकारगताः' अपने पूर्वकृत पाएका फल भोग रहे हैं ॥९॥ ___अन्वद्यार्थ-कोई कोई अधर्मी और साधुओं से द्वेष रखने वाले लोग कहते हैं, इस प्रकार जीवनयापन करनेवाले ये साधु अपना बदला चुका रहे हैं अर्थात् पूर्वकृत कर्मों का फल भुगत रहे हैं ॥९॥ टीका--जो साधुओं के विरोधी है, प्रतिकूल वचन बोलते हैं, साधुओं के प्रति द्वेषसाब रखते हैं वे अनार्यों के सम्मान लोग साधु को Aval-'पडिपंथियमागया-प्रातिपथिकतामागताः' साधु सनना देषी 'अपेगे-पिएके' | 'पडिभासंति-प्रतिभाषन्ते' ४ छ है 'जे एए-ये एते' २ मा साधुमे। ‘एवंजीविणा-एव जीविनः' मा ४२ मिक्षावृत्तिथी वन धारण ४२ छे. 'एए-एते' २॥ माणुसे'परियारगता-प्रतिकारगताः' पाताना पूर्व કૃત પાપનું ફળ ભેગવી રહ્યા છે. સેલા વાઈ—કઈ કઈ અધમ અને સાધુઓનો દ્વેષ કરનાર લોકો કહે છે કે “આ પ્રકારે જીવન વ્યતીત કરતાં આ સાધુએ પૂર્વકૃત કર્મોને બદલે ચુકવી રહ્યા છે–ફળ ભેગવી રહ્યા છે.” પલા ટકાથ–સાધુએના વિરોધીઓ-સાધુઓ પ્રત્યે દ્વેષભાવ રાખનારા અનાર્ય લેક જેવા માણસે સાધુઓને જોઈને આ પ્રકારનાં પ્રતિકૂળ વચને બોલે છે
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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