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________________ - समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. म. ४ उ. २ स्खलितचारित्रस्य कर्मबन्धनि० ३१७ - छाया -- एवं खलु तासु विज्ञप्तं संस्तवं संवासं च वर्जयेत् ॥ तज्जातिका इमे कामाः अवधकरा चैवमाख्याताः ॥ १९ ॥ 7 अन्वयार्थ : - (वासु) तासु स्त्रीषु ( एवं खु-विन्नप्पं ) एवं खलु उक्तप्रकारेण विज्ञ कथितम् (संथ संत्रासं च वज्जेज्जा) संस्तवं संवासं च वर्जयेत्, संस्थबं स्त्रीणां परिचयं स्त्रीभिः सवास वा परिहरेत् एवं कथितमिति, किमर्थं परि'चयं-सहवासं त्यजेतत्राह - ( तज्जातिया इमे कामा) तज्जातिका इमे कामाः - इमे ? कामाः शब्दादयः तज्जातीयाः स्त्रीभ्यः समुत्पन्नाः ( वज्जकरा य एवमक्खाए) अत्रयकराः नरकनिगोदादिकारण भूतपापोश्पादका एव उक्तरूपेण आख्याताः कथिताः तीर्थकरैरिति ॥१९॥ ! ! अब सूत्रकार उपसंहार द्वारा स्त्री सम्बन्ध का परिहार करने के - लिए कहते हैं-' एवं ' इत्यादि । शब्दार्थ - - ' तासु तासु' स्त्रियों के विषय में 'एवं खुविन एवं : खलु विज्ञत' इसी प्रकार का कथन किया है 'संथवं संवासं च वज्जेज्जासंस्तवं संवासं च वर्जयेत् । इस कारण साधु स्त्रियों के साथ परिचय 'और सहवास वर्जित करे 'तज्जानिया इमे कामा-तजातिका: इमे कामाः ' स्त्री के संसर्ग से उत्पन्न होने वाला शब्दादि काम भोग 'वज्जकराय एवमक्खाए-अवधकरा एवमाख्याताः पाप को उत्पन्न करता है ऐसा तीर्थंकरो ने कहा है ॥ १९ ॥ 1 अन्वयार्थ — इस प्रकार स्त्रियों के विषय में पूर्वकथित परिचय का त्याग करना चाहिए। उनके साथ निवास भी नहीं करना चाहिये । क्योंकि ये काम स्त्री जातीय हैं अर्थात् स्त्रियों से ही उत्पन्न होते हैं, હવે સૂત્રકાર આ ઉદ્દેશકના ઉપસ'હાર કરતા સ્ત્રીસ પક'ના પરિત્યાગ रवाना उपदेश आये छे- 'एवं' इत्याह- शब्दार्थ——'तासु-तासु' स्त्रियोना समधमां- 'एवं खु विन्नप्पं एवं खलु विज्ञातं ' प्रमाणे अथन उरेस छे. 'संथवं संत्रासं च वज्जेज्जा - संस्तव संवासं 1 'च वर्जयत्' मा 'धारणुथी साधु मे स्त्रियोनी सानो परिय अने सहवासना त्याग _१२वा. ४२ है तज्जातिया इमे कामात जातिका' ईमे कामाः खींना संसर्गथी उत्पन्न थवावाजा शब्दाहि अमलोग 'वज्जरां य एवमक्खाए - अवधकरा एवमा ख्याताः ' थापने उत्पन्न उरे से प्रभा तीर्थ मे उधु छे, १९ સૂત્રા~~આ પ્રકારે સ્રીસ''ના પૂર્વોક્ત પરિણામેાને વિચાર કરીને સાધુએ સ્ત્રીઓના પરિચય રાખવા જોઈ એ નહીં, તેમની સાથે નિવાસ પણ
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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