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________________ २८८. . . . . . . . " सूत्रकृतामसूत्रे मूलम्-दोरुणि सांगपागाय पंजोओ का भविस्तइ रांओ। पार्याणि य में रयानेहि एहि ता में पिट्ठओ प्रदे॥५॥" छाया-दारूणि शाकपाकाय प्रयोतो वा भविष्यति रात्रौ । पादौ च ये रञ्जय एहि तावन्गे पृष्ठं मर्दय ॥५॥ अन्वयार्थः- (सागपागाए) शाकणकाय (क्षारुणि) दारूणि-झाष्ठानि आनय (ड्राओ) रामौ (पन्जोओ वा भविस्स) प्रद्योतः प्रज्ञाशो वा भविष्यतीत्यतस्तैलादिक मानय (मे पायाणि रयावेटि) मे मम पादौ वा रंजय लेपय तथा परित्यज्यापरं __ शब्दार्थ-सागपानाए-शाशपाकाय' शाक पकाने के लिये 'दारुणि -दारूणि' लकडी लाव 'रामो-रानो' रात “एजोओ वा भविस्सइप्रद्योतो या भविष्यति' प्रसाश के लिये तेल आदि लावो 'मे पायाणि रयावेहि-मे पात्राणि रंजय' मेरे पात्रों को अश्या पैर को रंग दो 'ता तावत्' पहले तो 'एहि-एहि' यहां आयो 'मे पिट्ठो मद्दे-मे पृष्ठं मर्दय' मेरी पीठ मल दो ॥५॥ - अन्वयार्थ--शाक पकाने के लिये लकडियाँ ले आओ । रात्रि में प्रकाश करने के लिये तैलादि की व्यवस्था करो। मेरे पात्रोंको या पैरों को रंग दो । अन्य कोर्थ छोडकर पहले यहां आओ । मेरी पीठ का मर्दन कर दो । भोजन पकाने के लिए देर तक बैठी रहने से मेरे शरीर में पीड़ा उत्पन्न हो गई है । जरा मालिश तो कर दो ॥५॥ હતી, એ જ સ્ત્રી હવે તેને પિતાને અધીન થઈ ગયેલે સમજીને તેને દાસની જેમ આદેશ અપાતી થઈ જાય છે કે કો ____शा-'सागपागाए-शाकपाकाय' AI मना भाट 'दारुणि-दारूणि' at ana'राओ-रात्रौ शत्रे 'प्रज्जो भो वा भविस्सा-प्रद्योतो वा भविष्यति' ॥श ४२६ माटे तेल वगेरे दावे 'मे पायाणि रयावेहि मे पात्राणि रंजन' भा। पात्रो अथवा पाने २गी धो 'ता-तावत् ' पडसां एहि-एहि' मडियां आयो मे पिढओ महे-मे पृष्ठं मईय' भारी पी3 मसजी घो. ॥५॥ સૂત્રાર્થ શાક આદિ રાંધવાને માટે લાકડાં લઈ આવે, રાત્રે દી કરવા માટે તેલને પ્રબંધ કરે, મારાં પાત્રને રંગી દે, મારા હાથ-પગ લાલ રંગથી રંગી દો, બીજા કાને છોડીને મારી પાસે આવે. કયારની રસોઈ
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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