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________________ 1 afaltant प्र. श्रु. अ. ४ उ. १ स्त्रीपरीषह निरूपणम् अपि च मूलम् -सीहं जहा व कुणिमेणं निव्भयमेगं चरंति पासणं । एविरिथेाड बंधति संवुडं एगतियमणगारं ॥ ८॥ छाया - सिंहं यथा मांसेन निर्भयमेकचरं पाशेन । एवं स्त्रियो बध्नन्ति संवृत मेकतयमनगरम् ॥८॥ अन्वयार्थ:-- (जहा) यथा (नियं) निर्भयं गतमयं (एमचरंति) एकचरम् (सी) सिंहम् (कुणिमेणं) मांसेन - मासं दत्वा ( पासेणं) पाशेन गलत्रादिना (धति) araa aधिकाः ( एवं ) एवं तथैव (इत्थियाउ) स्त्रियः (संबुर्ड) संहृतं == आज्ञा के अनुसार अच्छा या बुरा कार्य करता है, उसी प्रकार स्त्रियां साधु को अपने अधीन हुआ जानकर उसे कुकर्म करने में प्रवृत्त करती हैं ॥७॥ शब्दार्थ –'जहा - यथा' जैसे निष्भयं निर्भयम्' भयरहित 'एगच रंति - एकचरम्' अकेला ही विचरनेवाले 'सीहं - सिंहम्' सिंहको 'कुणिमेणं - मांसेन' मांस देकर ' पाले-पाशेन' पाशके द्वारा ' बंधंति वघ्नन्ति' वधकजन पकड लेते है-' एवं - एवम्' उसी प्रकार 'इस्थियाउस्त्रिय:' स्त्रियां 'संबुर्ड - 'संवृत्तम् ' मन वचन और कायसे गुप्त ऐसें और 'एगलयं - एकतिकं' एकाकी 'अणगारं - अनगारम्' साधुको 'बंधंतिघनन्ति' अपने हावभावरूपी पाशसे बांध लेती हैं ||८|| अन्वयार्थ - जैसे निर्भय और एकाकी विचरण करने वाले सिंह को मांस से लुभाकर शिकारी पाश में बांध लेते हैं उसी प्रकार स्त्रियों संवरयुक्त अर्थात् मन वचन एवं काय से गुप्त, एकाकी अनगार को फँसा लेती हैं ॥ ८ ॥ 1 - २१६ માલિક સારુ અથવા નરસુ` કામ કરાવી શકે છે, એજ પ્રમાણે સ્ત્રી સાધુને પેાતાને આધીન થયેલા જાશુીને તેને કુકમ કરવામાં પ્રવૃત્ત કરે 111911 शब्दार्थ –'जहा-यथा' प्रेम 'निव्भयं निर्भयम्' लयथी रहित भने 'एग चरति - एकचरम्' मेसो न वियरवावाणा 'सीहं - सिंहम्' सिंहने 'कुणि मेणमांसेन' भांस साथीने 'पात्रेण-पाशेन' पाश द्वारा 'वैधति - बध्नन्ति' शिठारीये। थडी से छे 'एवं - एवम् रीते 'इत्थियाउ - त्रिपः' खियेो 'संवुडं - संवृतम्' भन वयन भने अयथी गुप्त सेवा भने ' एगतयं एगतिकं' मेउसा सेवा 'अणगारं - अनगारम्' साधुने 'बंधति - बध्नन्ति' पोताना डावभाव ३यी पाशथी ખાંધી લે છે. ૫૮માં સૂત્રા—જેવી રીતે નિર્ભય અને એકલા વિચરતા સિહુને માંસ વડે લલચાવીને શિકારી પાશમાં ખાધી લે છે, એજ પ્રમાણે અિએ પણ સાઁવરયુક્ત-મન, વચન અને કાયગુપ્તિથી યુક્ત એકાકી સાધુને ફસાવી લે છે.
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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