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________________ सम्यक्त्व-अध्य० ४. उ. २ ६१५ यद्वा-अनास्त्रवापरिरवयोः क्रमं दर्शयति-'येऽनास्त्रवास्तेऽपरित्रवाः' इति। ये प्रथमे समयेऽनास्रया भवन्ति-कर्मवन्धका न भवन्ति, ते तत्पश्चात् समये अपरिस्रवा भवन्ति-कर्मनिर्जरका न भवन्ति, बढस्यैव कर्मणो निर्जरणीयत्वात् । एवं येऽपरिसवारतेऽनास्त्रवा इति बोध्यम् । एतदपि व्याख्यानं सिद्धापेक्षया ।। म०१ ॥ यहोवं ततः किम् ? इत्याह-'ए पए' इत्यादि । मूलम्-एए पए संबुज्झमाणे लोयंच आणाए अभिसमिच्चा पुढो पवेइयं ॥सू० २ ॥ छाया-एतानि पदानि संवुध्यमानः लोकं चाज्ञयाऽभिसमेत्य पृथक् प्रवेदितम्।। टीका---एतानि अनन्तरोक्तानि, पदानि='ये आस्रवास्ते परिस्रवाः' इत्यादीनि संबुध्यमानः सम्यग् जानन्, तथा लोकं-पड्जीवनिकायम् आस्रवागतकर्मणा अथवा-अनास्त्रब और अपरिस्रव के क्रमको दिखाते हैं-"ये अनास्रवास्ते अपरित्रवाः ' जो प्रथम समयमें अनानव हैं-कर्मबन्ध के कर्ता नहीं हैं, वे उसके बाद के समय में अपरित्रव हैं-कर्म की निर्जरा करनेवाले नहीं हैं, कारण कि जो कोसे बंधा हुआ होता है वही उनकी निर्जरा करनेवाला भी होता है। जो कर्मोसे बंधा हुआ ही नहीं है वह निर्जरा भी किसकी करेगा। इसी प्रकार "येअपरिस्रवास्ते अनास्त्रवाः" यह वाक्य भी समझ लेना चाहिये। यह विवरण भी निद्रोंकी अपेक्षा से ही किया गया है ऐसा समझना चाहिये । स० १॥ यदि ऐसा है तो इससे क्या? इसका उत्तर कहते हैं-'एए पए संवुज्झमाणे ' इत्यादि । इन पूर्वोक्त पदों को अच्छी तरहसे जाननेवाला कौनसा ऐसा प्राणी होगा जो आरवसे आये हुए कर्मों से बंधे हुए, और तप एवं संयम के અથવા–અનાસવ અને અપસ્લિવના કમને બતાવે છે— ये अनानवाम्ते अपरिलवाः " २ प्रथम समयमा मनासक छे-भावना કર્તા નથી તે ત્યારબાદના સમયમાં પરિવ છે-કર્મની નિર્જરા કરવાવાળાં નથી, કારણ કે જે કર્મોથી બધાએલા રહે છે તે તેની નિર્જશ કરવવાવાળા પણ હોય છે. જે કર્મોથી બધાયેલા જ નથી તે નિર્જરા પણ કેની કરશે ?. આ જ ५३. ये अपरिवारते अनावदा ' l पाय ५ नमो . २१ વિવેચન પણ સિદ્ધોની અપેક્ષાથી જ કરેલ છે. જે ૪૦ ૧ से गमछेतो तनाथी ? कानु उत्त२४- गा पा संयुज्झमाणे' त्यादि। તે પૂર્વોક્ત પદને ઘણી સારી રીતે જાણનાર કે તે પ્રાણ હશે જે આજથી આવેલા કર્મોથી બંધાયેલા અને તપ સંયમના આરાધનાથી રહિત અ.
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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