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________________ आधारागसूत्रे ___ मूलम्-सेवंता कोहंचमाणंच मायंचलोभं च, एयंपासगस्स दंसणं, उवरयसत्थस्सपलियंतकरस्स,आयाणं सगडब्भि ॥सू०१॥ __ छाया-स वृमिता क्रोधं च मानं च मायां च लोभं च । एतत् पश्यकस्य दर्शनं उपरतशस्त्रस्य पर्यन्तकरस्य, आदानं स्वकृतभित् ॥ मू० १॥ टीका-स-शुभाध्यवसायपूर्वकसंयमाराधनपरायणः श्रमणः, क्रोधं मान मायां लोभ च वमिता अपनेता भवति । अत्रैकपदेन क्रोधमानमायालोमानिति वक्तव्ये पृथक् पृथगुपादानमेकैकस्य क्रोधादेनन्तानुवन्ध्यादिभेदेन चतुर्विधत्वं दर्शयति । तेषामुपशमो युगपन्न संभवति, तस्मादेकैकस्योपशमार्थ पृथक् पृथक् प्रयत्नो से छूट जाता है। ये सब बातें तीसरे उद्देशकके अन्तिम सूत्रों में प्रकट कर दी गई हैं। परन्तु वह छूटता कैसे है ? सो कहते हैं- से वंता' इत्यादि। शुभअध्यवसायपूर्वक संयमकी आराधनामें तत्पर श्रमण-मुनि क्रोध, नान, माया और लोभका बमिता-अपनेता-नाशक होता है । मूत्र में "क्रोधं मानं मायां लोभं” इस प्रकार इन द्वितीयान्त पदोंका अलग अलग स्वतंत्र प्रयोग किया गया है, उसका कारण क्रोधादिकोंमें एकएकके अनन्तानुबन्धी आदिके भेदसे चार-चार भेदों को दिखाना है। अर्थात्-समास करने पर-"क्रोधमानमायालोभान "-ऐसा एक पद बन जाता है, फिर भी इस एक पदका प्रयोग न कर जो प्रत्येक पद' मत्रमें स्वतन्त्र विभक्तिवाले रखे हैं उसका कारण क्रोध आदि, अनन्तानुवन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यानावरण एवं संज्वलनके भेदसे चार २ प्रकारके हैं, यह बतलाना है। तथा इनका उपशम एक साथ एक ही जगह नहीं होता है किन्तु એ સઘળી વાતે ત્રીજા ઉદ્દેશના અંતિમ સૂત્રમાં તથા આ ઉદેશના અન્ય સૂત્રમાં प्रगट ४२वाभा यावे. ५२न्तु ते छुटेछ वी शते १ ते ४ छ-से वंताईत्यादि. શુભ અધ્યવસાયપૂર્વક સંયમની આરાધનામાં તત્પર શ્રમણ-મુનિ ક્રોધ, માન, માયા અને લોભના વમિતા–અપનેતા–નાશક બને છે सूत्रमा "क्रोध, मानं, माया, लोभं" मारे २मा द्वितीयान्त होना मान અલગ સ્વતંત્ર પ્રગટ કરેલ છે તેનું કારણ ક્રોધાદિકોમા એક–એકના અનન્તાનુબ ધી मादिना लेहथीयार यार लेह मतावाना छे. अर्थात् समास ४२वाथी “ क्रोधमानमायालोभान् ” मे मे ५६ मने छे तो मा. मे पहनो प्रयो। न शन જે પ્રત્યેક પદ સૂત્રમાં સ્વતંત્ર વિભક્તિવાળા રાખેલ છે તેનું કારણ ફોધ આદિઅનન્તાનુબંધી, અપ્રત્યાખ્યાન, પ્રત્યાખ્યાનાવરણ અને સંવલનના ભેદથી ચાર ચાર પ્રકારે છે, તે બતાવવાનું છે. તથા તેને ઉપશમ એક સાથે એક જ જગ્યા ઉપર
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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