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________________ शीतोष्णीय-अध्य० ३. उ. ३ ४६५ मूलम्--सहिओ दुक्खमच्चत्ताए पुट्ठो नो झंझाएति, पासिमं दविए लो गालोगपवंचाओ मुच्चइ-त्तिबेमि ॥ सू० १५॥ ____ छाया--सहितो दुःखमात्रया स्पृष्टः न झन्झायति, पश्येमं द्रविको लोकाऽऽलोकप्रपञ्चान्मुच्यते-इति ब्रवीमि ॥ मू० १५॥ टीका—सहितः ज्ञानचारित्रयुक्तः, दुःखमात्रया शीतोष्णपरीषहसमुत्पन्नया व्याध्युपसर्गजनितया वाऽल्पया महत्या वा स्पृष्टो सन् न झञ्झायतिन्न व्याकुलीभवति, कपायं न कुर्यादित्यर्थः । किंच-हे शिष्य ! इमं वक्ष्यमाणमर्थ, यद्वा-इममुक्तम) 'संधि लोगस्स जाणित्ता' इत्यारभ्य 'णो झंझाएति' इत्यन्तेन प्रतिबोधितं, पश्य हेयोपादेयविवेकेन सम्यग् जानीहि । तमेवार्थ दर्शयितुमाह-'द्रविक' ज्ञान एवं चारित्रसंपन्न संयमी मुनि शीत-उष्ण परीषहसे उत्पन्न अथवा कोई व्याधि या उपसर्गसे जनित दुःखकी थोड़ी या बहुत मात्रासे स्पृष्ट होता हुआ भी कभी भी आकुलितचित्त नहीं होता है। इस लिये हे शिष्य ! इस आगे कहे जानेवाले अर्थको अथवा “संधि लोगस्स" यहां से लगाकर "णो झंझाएति" यहां तक जो कुछ अभी तक अर्थ प्रकट किया गया है उसको हेय और उपादेयके विवेकसे वासितअन्तःकरण हो तुम पूर्णरूपसे अपने ध्यानमें रखो । “संधि लोगस्स" यहांसे प्रारंभकर "णो झंझाएति" यहां तक जो कुछ भी विषय कहा गया है उसका निचोड़ अर्थ यही है कि-रागद्वेषसे रहित मुनि चौदह (१४) राजुप्रमाण इस लोकमें प्रत्यक्षसे दिखते हुए चतुर्गति में भ्रमणरूप व्यवहारसे सदाके लिये मुक्त हो जाता है। જ્ઞાન અને સાત્રિ–સંપન્ન સંયમી નિ, શીત, ઉષ્ણ પરીષહથી ઉત્પન્ન થયેલ. અથવા કેઈ વ્યાધિ અગર ઉપસર્ગથી જનિત થેડી અગર વધારે દુઃખની માત્રાથી સ્કૃષ્ટ બનવા છતાં પણ કદિ પણ આકુલિતચિત્ત નથી થતાં. માટે હે શિષ્ય! मा ४ाम वशे ते मथ ने मथवा “संधि लोगस्स" मडीयाथी सन ‘णो झंझाएति' त्यां सुधीरे सत्या२ सुधा म प्रगट रेस છે તેને હેય અને ઉપાદેયના વિવેકથી વાસિત અંતઃકરણ બની તમે પૂર્ણ રૂપથી पोताना ध्यानमा रामा. “संधि लोगस्स” त्यांथी प्रारभ ४३ " णो झंझाएति" ત્યાં સુધી જે કંઈ પણ વિષય કહેવામાં આવેલ છે તેને નિચોડ અર્થ એ છે કે-રાગદ્વેષથી રહિત મુનિ ચૌદ (૧૪) રાજુ પ્રમાણ આ લોકમાં પ્રત્યક્ષથી દેખાતાં ચતુગતિમાં ભ્રમણરૂપ વ્યવહારથી સદાને માટે મુક્ત થઈ જાય છે. ५९
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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