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टाक
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॥ अथ पञ्चमोद्देशः। विषय १ चतुर्थ उद्देशके साथ पञ्चम उद्देशका सम्बन्धप्रतिपादना २६२-२६४ २ प्रथम मूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र ।
___२६४ ३ गृहस्थ कर्मसमारम्भ जिन हेतुओं से करते हैं, उन हेतुओं का प्रतिपादन ।
२६५-२६८ ४ द्वितीय मूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र ।
२६९ ५ भविष्य में उपभोग के लिये पदार्थों के संग्रहमें
प्रवृत्त गृहस्थों के बीच संयमाराधनमें तत्पर अनगार को किस प्रकार रहना चाहिये।
२६९-२७२ ६ तृतीय सूत्र का अवतरण और तृतीय भूत्र । ७ साधुको क्रयण, क्रापण और उसके अनुमोदन से रहित होना चाहिये।
२७३-२७५ ८ चतुर्थ स्त्रका अवतरण और चतुर्थ मूत्र ।
२७६ ९ हननकोटित्रिक और क्रयणकोटिनिकसे रहित साधुका वर्णन । २७६-२८३ १० पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र ।
२८३ ११ साधुको एषणीय आहारके सदृश एषणीय वस्त्रपात्रादि भी गृहस्थसे ही याचना चाहिये।
२८४ १२ षष्ठ सूत्रका अवतरण और षष्ठ सूत्र ।
२८५ १३ 'मुनिको मात्राज्ञ होना चाहिये ' इसका वर्णन । २८५-२९१ १४ सप्तम सूत्रका अवतरण और सप्तम मूत्र ।
२९१ १५ श्रुतचारित्र रूप इस मार्गको आयौँने प्रवेदित किया है। इस मार्ग पर
स्थित हो कर जिस प्रकार कर्म से उपलिप्त न हो वैसा करना चाहिये।
__२९१-२९२ १६ अष्टम सूत्रका अवतरण और अष्टम मूत्र।
२९२ १७ हिरण्य-सुवर्णादि तथा शब्दादि काम दुरुल्लङ्घ्य हैं । इन कामों
को चाहनेवाले पुरुपकी जो दशा होती है उसका वर्णन। २९३-२९९ १८ नवम सूत्रका अवतरण और नवम मूत्र ।
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