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॥ अथ तृतीयोदेशः ।। विषय
पृष्ठा १ द्वितीय उद्देश के साथ तृतीय उद्देश का सम्बन्धप्रतिपादन। १६३ २ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । ३ पण्डित को उच्च कुलकी प्राप्ति से हर्ष नहीं करना चाहिये और
न नीच कुलकी प्राप्तिसे क्रोध ही करना चाहिये। १६५-१७० ४ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय मूत्र ।
१७१ ५ किसी भी प्राणीका अहित नहीं करना चाहिये । प्राणियों के ___ अहित करनेवालों की दुरवस्था का वर्णन ।
१७२--१८६ ६ तृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय मूत्र । ७ उच्चकुलाभिमानी मनुष्य प्राणियों का अहित करके जन्मान्तर में कोई अन्धता आदि फल पाकर सकलजननिन्दित होता हुआ,
और कोई खेत-घर-धनधान्य-स्त्री आदि परिग्रहमें आसक्त हो तप आदिकी निन्दा करता हुआ विपरीत बुद्धिवाला हो जाता है।
१८७-१९४ ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ भूत्र ।
१९४ ९ संयमियों के कर्तव्य का निरूपण ।
१९५-२०६ १० पञ्चम सत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र ।
२०७ १९ असंयमियों के जीवन स्वरूपका वर्णन ।
२०७-२१४ १२ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र ।
२१४-२१५ १३ असंयमीका अन्यायोपार्जित धन नष्ट हो जाता है, और कुटुम्ब
की चिन्ता से व्याकुल वह असंयमी कार्याकार्य को नहीं जानता हुआ विपरीतबुद्धियुक्त हो जाता है।
२१५-२२१ १४ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवा सूत्र । १५ 'सुखको चाहनेवाला मूढमति असंयमी मनुष्य दुःखही भोगता
है ' इस बातको भगवान महावीर स्वामीने स्वयं प्ररूपित किया है - इस प्रकार सुधर्मा स्वामी का कथन ।
२२२-२२६ १६ आठवें सत्रका अवतरण और आठवा मृत्र।
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