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________________ १६४ १८६ ॥ अथ तृतीयोदेशः ।। विषय पृष्ठा १ द्वितीय उद्देश के साथ तृतीय उद्देश का सम्बन्धप्रतिपादन। १६३ २ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । ३ पण्डित को उच्च कुलकी प्राप्ति से हर्ष नहीं करना चाहिये और न नीच कुलकी प्राप्तिसे क्रोध ही करना चाहिये। १६५-१७० ४ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय मूत्र । १७१ ५ किसी भी प्राणीका अहित नहीं करना चाहिये । प्राणियों के ___ अहित करनेवालों की दुरवस्था का वर्णन । १७२--१८६ ६ तृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय मूत्र । ७ उच्चकुलाभिमानी मनुष्य प्राणियों का अहित करके जन्मान्तर में कोई अन्धता आदि फल पाकर सकलजननिन्दित होता हुआ, और कोई खेत-घर-धनधान्य-स्त्री आदि परिग्रहमें आसक्त हो तप आदिकी निन्दा करता हुआ विपरीत बुद्धिवाला हो जाता है। १८७-१९४ ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ भूत्र । १९४ ९ संयमियों के कर्तव्य का निरूपण । १९५-२०६ १० पञ्चम सत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र । २०७ १९ असंयमियों के जीवन स्वरूपका वर्णन । २०७-२१४ १२ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र । २१४-२१५ १३ असंयमीका अन्यायोपार्जित धन नष्ट हो जाता है, और कुटुम्ब की चिन्ता से व्याकुल वह असंयमी कार्याकार्य को नहीं जानता हुआ विपरीतबुद्धियुक्त हो जाता है। २१५-२२१ १४ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवा सूत्र । १५ 'सुखको चाहनेवाला मूढमति असंयमी मनुष्य दुःखही भोगता है ' इस बातको भगवान महावीर स्वामीने स्वयं प्ररूपित किया है - इस प्रकार सुधर्मा स्वामी का कथन । २२२-२२६ १६ आठवें सत्रका अवतरण और आठवा मृत्र। २२७ 0 - ८ c २२१ : 5
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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