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________________ ४२ विषय १६ आठवे सूत्रका अवतरण और आठवां सूत्र | १७ वृद्धावस्थामें कोई रक्षक नहीं होता और बाल्यावस्था भी पराधीन होने के कारण दुःखमय ही है - ऐसा विचार कर युवावस्था को ही संयमपालन का योग्य अवसर समझना चाहिये । " ७ 'अनगार' कौन कहलाते हैं । ॥ अथ द्वितीयोदेशः ॥ १ प्रथम उद्देश के साथ द्वितीय उद्देश का सम्बन्धप्रतिपादन । २ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । ३ संसारकी असारता को जाननेवाला मुनि संयमविषयक अरतिको दूर कर क्षणमात्रमें मुक्त हो जाता है । ४ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र । ५ जिनाना से बहिर्भूत साधु मुक्तिभागी नहीं होता । ६ तृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय सूत्र । पृष्ठाङ्कः १८ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र । १९ वार्द्धक्य और रोगों से जब तक श्रोत्रादि इन्द्रियों के परिज्ञान नष्ट नहीं हुए हैं, तभी तक चारित्रानुष्ठानमें प्रवृत्त हो जाना चाहिये । १२३ - १२७ ॥ इति प्रथमोद्देशः ॥ ** १०० १०१-१२२ १२२ * १२८ १२९-१३० १३१-१३७ १३८ १३९-१४४ १५५ १४६-१५४ १५४ ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र । ९ विषयासक्तिवश परितप्त होकर धन की स्पृहासे दण्डसमारम्भ करनेवाला मनुष्य का वर्णन | १५५-१५९ १० पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र | १५९ ११ संयमी को दण्ड समारम्भ नहीं करना चाहिये | उद्देश समाप्ति | १६०-१६२ ॥ इति द्वितीयोद्देशः ॥
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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