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विषय
१६ आठवे सूत्रका अवतरण और आठवां सूत्र |
१७ वृद्धावस्थामें कोई रक्षक नहीं होता और बाल्यावस्था भी पराधीन होने के कारण दुःखमय ही है - ऐसा विचार कर युवावस्था को ही संयमपालन का योग्य अवसर समझना चाहिये ।
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७ 'अनगार' कौन कहलाते हैं ।
॥ अथ द्वितीयोदेशः ॥
१ प्रथम उद्देश के साथ द्वितीय उद्देश का सम्बन्धप्रतिपादन ।
२ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र ।
३ संसारकी असारता को जाननेवाला मुनि संयमविषयक अरतिको दूर कर क्षणमात्रमें मुक्त हो जाता है ।
४ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र ।
५ जिनाना से बहिर्भूत साधु मुक्तिभागी नहीं होता ।
६ तृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय सूत्र ।
पृष्ठाङ्कः
१८ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र ।
१९ वार्द्धक्य और रोगों से जब तक श्रोत्रादि इन्द्रियों के परिज्ञान नष्ट नहीं हुए हैं, तभी तक चारित्रानुष्ठानमें प्रवृत्त हो जाना चाहिये । १२३ - १२७ ॥ इति प्रथमोद्देशः ॥
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१००
१०१-१२२
१२२
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१२८
१२९-१३०
१३१-१३७
१३८
१३९-१४४
१५५
१४६-१५४
१५४
८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र ।
९ विषयासक्तिवश परितप्त होकर धन की स्पृहासे दण्डसमारम्भ करनेवाला मनुष्य का वर्णन |
१५५-१५९
१० पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र |
१५९
११ संयमी को दण्ड समारम्भ नहीं करना चाहिये | उद्देश समाप्ति | १६०-१६२
॥ इति द्वितीयोद्देशः ॥