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________________ ३३८ आचाराङ्गसूत्रे ततः किमायातमिति दर्शयति- सद्दे' इत्यादि, मूलम्-सद्दे य फाले अहियासमाणे, निविंद नंदि इह जीवियस्त । मुणी मोणं समायाय, धुणे कम्मसरीरगं । पंतं लूहं च सेवंति, वीरा संमत्तदंसिणो। एस ओहंतरे मुणी तिन्ने मुत्ते विरए वियाहिए-त्तिवोमि ॥ सू० ६॥ छाया-शब्दान् च स्पर्शानधिसहमानो, निर्विन्द नन्दिमिह जीवितस्य, मुनिमौन समादाय धुनीत कमशरीरकं, प्रान्तं रूक्षं च सेवन्ते वीराः सम्यक्त्वदर्शिनः, एप ओघन्तरो मुनिस्तीर्णो मुक्तो विरतो व्याख्यात इति ब्रवीगि ॥ सू०६॥ ____टीका-शब्दा'-नित्यादि, शब्दान् स्पर्शाश्व-इष्टाननिष्टांश्च, आद्यन्तग्रहणादितरेप मध्यवर्तिनां रूपादीनामपि ग्रहणम् । अधिसहमानः सम्यक् सहमानः रागसे दूर हो जाती है, इसी प्रकार इन परिणामों की भी यही स्थिति होती है। इसीलिये संयमी मुनि शब्दादिक कामगुणों में मूर्छाभाव को प्राप्त नहीं होते हैं। सूत्र में सूत्रकार ने वार२ जो 'वीर' शब्द का प्रयोग किया है, उससे यही ध्वनित होता है कि कर्मरूपी शत्रु ऐसे संयमीजनों के द्वारा अवश्य जीतने के योग्य है ॥सू० ५॥ ____इससे क्या सिद्ध होता है ?-इस बातको दिखलाते हैं-" सद्दे य फासे” इत्यादि। । सूत्र में अन्तकी कर्ण-इन्द्रिय के विषय शब्द' का और आदि की स्पर्शन-इन्द्रिय के विषय स्पर्श का निर्देश किया है। इससे मध्यवती इतर इन्द्रियों के विषय-रूपादिकों का भी ग्रहण हो जाता है। शिष्य को संबोधन करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि हे मेधावी शिष्य ! इन्द्रियों के इप्ट और अनिष्ट विपयों में तुम सर्वथा रागद्वेष मत करो । शास्त्र આ પરિણામેની પણ તે સ્થિતિ છે માટે સયમી મુનિ શબ્દાદિક કામગુણેમાં મૂભાવને પ્રાપ્ત થતા નથી. સૂત્રમાં સૂત્રકારે વારવાર જે વીર શબ્દનો પ્રયોગ કર્યો છે તેથી એ નક્કી થાય છે કે કર્મરૂપી શત્ર એવા સયમીજથી અવશ્ય જીતવા યોગ્ય છે સૂપ છે माथी शुसिद्ध थाय छ ? मे वातने मताव छ -“सह य फासे"त्यादि સૂત્રમાં અન્તની કઈ ઈન્દ્રિયના વિષય-શબ્દને અને આદિની સ્પર્શન ઈન્દ્રિયના વિષય-સ્પર્શને ગ્રહણ થયેલ છે, આથી મધ્યવર્તી બીજી ઇન્દ્રિયને વિષય-પાદિકેને પણ પ્રહણ થાય છે. શિષ્યને સંબોધન કરીને સૂત્રકાર કહે છે કે હૈ મેધાવી શિષ્ય ! ઇદ્રિના અને અનિષ્ટ વિષયમાં તમે સર્વથા રાગ
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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