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________________ ॥ आचारागसूत्रे द्वितीयाध्ययनस्य षष्ठोदेशः॥ अभिहितः पञ्चमोदेशः, साम्प्रतं षष्ठ आरभ्यते । इहानन्तरोद्देशके शरीरपरिरक्षणाय लोकनिश्रया विहरन्नासक्तिरहितोऽनगारो लोके ममत्वं न कुर्यादित्यर्थोऽभिहितः, स एवात्र प्रतिपाद्यते- सेतं' इत्यादि। पूर्वोदेशस्यान्तिममूत्रे न हु एवं अणगारस्स जायइ 'संयमिन एवं न कल्पते, इति कथितम् , तस्यैव विशदीकरणायाह-' से तं' इत्यादि । मूलम् -से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय तम्हा पावकम्मं नेव कुज्जा न कारवेज्जा ॥ सू० १॥ छाया-स तत् सम्बुद्धयमान आदानीयं समुत्थाय तस्मात्पापकर्म नैव कुर्यात् न कारयेत् ॥ सू० १ ॥ ॥ आचारांगसूत्रके दूसरे अध्ययनका छठा उद्देश ॥ द्वितीय अध्ययन का पंचम उद्देश संपूर्ण हुवा; अब यहां उसका छट्ठा उद्देश प्रारंभ किया जाता है। पंचम उद्देश में शरीर की रक्षा करने के लिये आसक्तिरहित होकर लोककी निश्रा से संयममार्ग में विचरना चाहिये, संयमी मुनि को लोक के साथ कभी भी ममत्व नहीं करना चाहिये'-यह बात कही गई है। इसी विषय की पुष्टि इस उद्देश में की जायगी 'सेतं' इत्यादि। पंचम उद्देश के "न हु एवं अणगारस्स जायइ" इस अन्तिम सूत्र में “संयमी को ऐसा नहीं कल्पता है" जो यह कहा है उसी को विशद करने के लिये कहते हैं-' से तं' इत्यादि । આચારાંગસૂત્રને બીજા અધ્યયનને છઠ્ઠો ઉદ્દેશ. બીજા અધ્યયનને પાંચમે ઉદ્દેશ સમાપ્ત . હવે છ ઉદ્દેશો આરંભ થાય છે. પાંચમાં ઉદ્દેશમાં શરીરની રક્ષા કરવા માટે આસક્તિ રહિત બનીને લેકની નિશ્રાથી સંયમીએ સંયમ માર્ગમાં વિચારવું જોઈએ. સંચમી મુનિએ લોકેની સાથે કઈ વખત પણ મમત્વ નહિ કરવું જોઈએ. આ વાત કહેવામાં यावेत छ. ते विषयनी पुष्टि २॥ देशमा ४२वामां मावशे.-'सेतं' त्यादि. पांयमा उद्देशमा “न हु एवं अणगारस्स जायइ" 20 मतिम सूत्रमा “સંયમીને એવું કલ્પતું નથી. એમ કહેલ છે તેનું વિશદ કરવાને માટે કહે छे-से तं' त्यादि
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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