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________________ - आधारास्त्रे न प्रमादोऽप्रमादः, स विधेयः, न तत्र प्रमादप्रमत्तेन भाव्यम् । अन्यदप्याह-'अल'मित्यादि, 'कुशलस्य' कुशान्-भावकुशान् अप्टविधकर्माणि लुनाति-छिनत्तीति कुशला कमविदारणपरस्तस्य प्रमादेन-मद्य-विषय-कपाय-निद्रा-विकथारूपेण अलं-व्यर्थ, तत्र कुशले प्रमादस्यासम्भवात् । किं कृत्वा प्रमादं न करोतीत्याह'शान्ती'-त्यादि, शान्तिमरणं, शमनं शान्तिः सकलकर्मनाशः, अत एव शान्तिः= रूप महामोह में आसक्ति नहीं करनी चाहिये । प्रमाद से संसार और अप्रमाद से मुक्ति का लाभ होता है । सूत्र में शान्ति और मरण इन शब्दों का वाच्य अर्थ क्रमशः अव्याबाधसुखलक्षण मोक्ष और चतुगतिरूप संसार है, क्यों कि "शमनं शान्तिः" शमन का नाम शांति है, वह समस्त कर्मों का अभावस्वरूप अवस्था है । इसका दूसरा नाम अव्याबाधसुखलक्षण मोक्ष भी है। बारंबार चतुर्गतियों में प्राणी जहां पर मरते रहते हैं उस का नाम मरण-संसार है। भावकुशरूप अष्टविध कर्मोंका जो छेदन करता है वह कुशल है, क्यों कि-"कुशान् लुनातीति कुशलः" । अष्ट प्रकार के कर्मों को विदारण करनेवाले का नाम कुशल है। "अलं कुशलस्य प्रमादेन" अर्थात् कुशल के लिये प्रमाद होता ही नहीं है। मद्य विषय कषाय निद्रा और विकथा के भेदसे प्रमाद पांच प्रकारका होता है । जो कर्मों को नाश करने में प्रयत्नशाली हो रहे हैं, वे कभी प्रमत्तदशासंपन्न नहीं होते हैं । कारण कि वे जानते हैं किप्रमाद से संसार में परिभ्रमण तथा अप्रमाद से शांति-अव्याबाधसुखઅને નપુણવેઃ રૂપ મહામહિમા આસક્તિ કરવી જોઈએ નહિ પ્રમાદથી સંસાર અને અપ્રમાદથી મુક્તિને લાભ થાય છે. સૂત્રમાં શાંતિ અને મરણ આ શબ્દને વાચ્ય અર્થ કમશ અવ્યાબાધસુખલક્ષણ મોક્ષ અને ચતુર્ગતિરૂપ સંસાર છે २५५ “शमनं शान्ति " शमननु नाम शांति छ ते समस्त भनी मला સ્વરૂપ અવસ્થા છે. તેનું બીજુ નામ અવ્યાબાધસુખલક્ષણ મેક્ષ પણ છે. વારંવાર ચતુર્ગતિમાં પ્રાણી જ્યાં મરતા રહે છે તેનું નામ મરણ–સંસાર છે ભાવકુશ રૂપ मटविध धनु छेदन ४२ छे. ते सुशी छे ४१२६१ “ कुशान् लुनातीति कुशल. " ALB प्रा२ना भानु विहारण ४२वापान नाम शण छ. " अलं कुशलस्य प्रमादेन" अर्थात् सुशणने माटे अमाह यतो नथी.. भविषय કષાય નિદ્રા અને વિકથાના ભેદથી પ્રમાદ પાંચ પ્રકાર હોય છે, જે કર્મોને નાશ કરવામાં પ્રયત્નશાળી હોય છે તે કોઈ વખત પ્રમત્તરશાસંપન્ન બનતાં નથી. કારણ કે તેઓ જાણે છે કેપ્રમાદથી સંસારમાં પરિભ્રમણ અને અપ્રમાદથી શાંતિ
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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