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. आचारासो शुद्धपृथिवी। अश्मलघुखण्डमिश्रिता मृत्तिका-शर्करापृथिवी। वालुकाव्यतिमिश्रा मृत्तिका-चालुकापृथिवी । एवं बहुविधाः पृथिवीकायाः, तथाहि-. . . . .
उपल-शिला-लवणो-पर-लोह-त्रपु-ताम्र-सीसक-रजत-सुवर्ण-हरितालहिङ्गलक-मनःशिला-सस्यकाजन-भवाला-भ्रकपटला-भ्रवालुका-गोमेद-रुचका-कस्फटिक - लोहिताक्ष--मरकत-मसारगल्ल-भुजगेन्द्रनील-गोपीचन्दन-गैरिक - इंसगर्भपुलफ-सौगन्धिक-चन्द्रकान्त-सूर्यकान्त-चैडूर्य-जलकान्तादयः सर्वे वादरपृथिवीकायभेदाः। एते च शुद्धपृथिव्यादयः स्वखनिस्थिता एव चेतनावन्तः । गोमयकचयरादिरूपशस्त्रोपहता रविवाहितापरूपशस्त्रोपहताच गतचेतना भवन्ति । बाद मिली मृत्तिका बालका पृथिवी कहलाती है । इस प्रकार पृथिवीकाय के अनेक भेद हैं, वे इस प्रकार :
पत्थर, शिला, नमक, उपर, लोहा, रांगा, तांबा, शीशा, चांदी, सोना, हडताल, हिंगल, मैनसिल, सस्यकांजन, मूंगा, अभ्रक अभ्रवालुका गोमेद, रुचक्र, अङ्क, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारगल्ल, भुजग, इन्द्रनील, गोपीचन्दन, गेरू, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्रकान्त सूर्यकान्त, वैडूर्य, जलकान्त, आदि वादर पृथिवीकाय के भेद हैं । वे शुद्ध पृथिवी आदि जब अपनी खान में स्थित होते हैं तभी सचेतन होते हैं। गोबर, कचरा आदि शस्त्रों से उपहत होकर या सूर्य की धूप और अग्नि के तापरूप शस्त्र से अचेमन हो जाते हैं। મળેલી માટી વાલુકાપૃથિવી કહેવાય છે. એ પ્રમાણે પૃથિવી કાયના અનેક ભેદ છે
पत्थर, शिक्षा, भी, 6५२-मा२१, बाटु, संगी, (sers), is, सीभु, यी, सानु, gua, हिंग, मनशित, सुरभी, भू-५२पाणi, म, Aust, शमी, ३५४, म, टि, alsताक्ष, भ२४त, भसारत, भु, छन्द्रनाa, सोपीयन, गेरू, सगला, Ya४, सोधि, यान्त, सूर्यान्त, वैडूर्य, rastra આદિ બાદરપૃથિવીકાયના ભેદ છે (આ ખર બાદર પૃથ્વીકાય છે). એ શુદ્ધ પ્રથિવી આદિ જ્યારે પિતાની ખાણમાં સ્થિત હોય છે, ત્યારે તે સચેતન હોય છે. છાણ-કચરે આદિ શસ્ત્રોથી ઉપહત (હણાએલા) થઈને, અથવા તે સૂર્ય અને અનિના તાપરૂપ શસથી અચેતન થઈ જાય છે.