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(४) स्त्रीविलोचनम् , इदं तैतिलमिति, कोचदाहुः, (५) गरादि, इदं गरंमित्याहुरन्ये, (६) वणिजम् , (७) विष्टिः, (८) शकुनिः, (९) चतुष्पदं, (१०) नागम् , (११) किंस्तुघ्नम् , इति ।
" . ...... .......: : : म अत्र ययादिविष्टयन्तानि सप्तःकरणानि चराणि, शकुन्यादीनि चत्वारि स्थिराणि वेदितव्यानि। : : :::
ववादिविष्टयन्तानां सप्तानां कस्यांश्चिदेकस्यां तियो नियमतःस्थित्यभावात्तानि सप्तचराणि, शकुन्यादीनां कृष्णपक्षीयचतुर्दश्यमावस्याशुक्लप्रविपतिथिपु. नियतस्थित्या तानि चत्वारि स्थिराणि मोच्यन्ते । स्पष्टं चेदं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ती सप्तमवक्षस्कारे। उक्तश्च तत्र-"एएसिणं भंते ! एकारसहं करणाण कर करणा चरा? (४) स्त्रीविलोचन (कोई कोई इसे 'तैतिल' मी नहते हैं), (५) गरादि ('गर' नाम भी है। (६) वणिज, (७) विष्टि, (८) शकुनि, (९) चतुष्पद, (१०), नाग, (११); किंस्तुन्न ।
ही इन ग्यारह. फरणो में नव से लेकर विष्टि तक सात करण चर है, मोर अन्त के शंकुनि आदि चार स्थिर है।
बब से लेकर विष्टि तक सात करण किसी एक तिथि में नियम से नहीं रहते इस कारण ये चर कहलाते हैं, शकुनि 'आदि अन्तिम चार करण कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, अमावास्या तथा शुलंपक्ष की प्रतिपदा तिथि में नियम से होते हैं, अत एव ये स्थिर कहलाते हैं । इस विषय का जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के सातवें वक्षस्कार में स्पष्ट रूप से , विवेचन किया ( मेने alle' पy ४३), (५) 16 ( तेनु २' नाम ५५ छ) (6). .(७) विष्टि (८) शनि (e)..यतु०५६ (१२) नाम (११) नि . . . 0 मनियार ४ामा मयी साधन विष्ट सुधा सात ४२ यर छ; अने वा शनि माहि-यार स्थिर छ.: . . .
: : : બવથી લઈને વિષ્ટિ સુધીના સાત કરણ કેઈ એક તિથિમાં નિયમિત રહેતા નથી તે કારણથી તેને ચર કહે છે, શકુનિ આદિ છેલ્લાં ચાર, કૃષ્ણ પક્ષની ચૌદસ, અમાવાસ્યા તથા શુકલ પક્ષની પ્રતિપદ-પ તિથિમાં નિયમિત રહે છે એટલે તે સ્થિર કહેવાય છે. આ વિષયનું વિવેચન જંબૂતી પ્રકૃતિના સાતમા વણકરમાં સ્પષ્ટ
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