SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णमो सिद्धाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन एक सौ आठ गुणन फल आता है। इस प्रकार एक सौ आठ पाप प्रतिदिन व्यक्ति द्वारा होते हैं । उनके नाश के लिये एक सौ आठ बार जप किया जाता है । हस्तांगुली - जाप्य हाथ की अंगुली पर भी नवकार मंत्र के जप की विधि है । दाहिने हाथ की कनिष्ठा अंगुलि के नीचे के पर्व (पौरवे) से अपना प्रारंभ करें। इस प्रकार कम से कनिष्ठा के तीनों पर्व, चौथा अनामिका के ऊपर का, पाँचवाँ मध्यमा के ऊपर का छठा तर्जनी के ऊपर का, सातव तर्जनी के मध्य का, आठवाँ तर्जनी के नीचे का, नौवाँ मध्यमा के नीचे का, दसवाँ अनामिका के नीचे का, ग्यारहवाँ अनामिका के मध्य का और बारहवाँ मध्यमा के मध्य का - इस प्रकार बारह जप हुए । अस्तु, नौ बार गिन लेने से एक माला पूर्ण हो जाती है। चारों अंगुलियों के बारह पीरवे होते हैं। वारत के साथ नौ का गुणन करने से गुणनफल एक सौ आठ होता है । इस विधि का सारांश यह है कि एक विशेषक्रम के साथ चारों अंगुलियों के बारह पौरवों पर नी वार जप करने से एक सौ आठ बार जप हो जाता है। माला-जाप्य एक सौ आठ मनकों की माला पर जप करना माला जाप्य कहा जाता है । सूत, चंदन, स्फटिक, | रुद्राक्ष तथा वैजयंती आदि अनेक प्रकार की मालाएं होती हैं, जिन पर जप किया जाता है । मंत्र का मुख्य संबंध तो मंत्र के आशय या भाव माला तो बाह्य साधन है। उससे मंत्रों की संख्या की गिनती होती है। आत्मा के साथ है । इसलिये मंत्र का जप करते समय, जप करने वाले का मन | के साथ जुड़ा हुआ होना चाहिए। यदि मन, मंत्र के आशय से विलकुल दूर रहे, केवल माला के मनके गिनते रहे तो उस जप से उतना लाभ नहीं होता, जितना होना चाहिये। इसलिये संत कबीर ने कहा है माला फेरत जुग भया, मिटा न मनका फेर । करका मनका डारिके, मन का मनका फेर ।। संत कबीर के कथन का अभिप्राय यह है कि माला फेरने वाला यदि मन को भी उसमें लगा दे | तो माला फेरना सार्थक हो जाए। यदि माला के साथ अंत:करण नहीं जुड़ता तो उसका लक्ष्य होता। ये तीन प्रकार के जप - क्रम बतलाए गए हैं- उनमें कमल - जाप्य - विधि सर्वोत्तम है । उसमें मन पूरा नहीं का उपयोग अपेक्षाकृत अधिक स्थिर रहता है । कर्मों के बंधन को क्षीण करने के लिये यह विधि अधिक उपयोगी है । सरलता की दृष्टि से मानसिक स्थिरता पूर्वक माला द्वारा भी जप किया जा सकता है । 1 १. मंगलमय नवकार, पृष्ठ ४१ २. मंगलवाणी, पृष्ठ ३८१. 59 ३. मंगलमय नवकार, पृष्ठ : ४२.
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy