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________________ सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना हैं। उनके त के नीचे के ऊपर वाँ तर्जनी मध्य का एक माला करने से थ चारों __ 'महामंत्रनां अजवाळा' नामक पुस्तक में श्री उपदेशप्रासाद, श्राद्धविधि आदि के आधार पर जप के संबंध में उल्लेख हुआ है- “मेरू का उल्लंघन करते ह लि के अग्र भाग से व्यग्रचित्तपूर्वक यदि जप किया जाय तो प्राय: अल्प फलप्रद होता है।" इससे यह ध्वनित होता है कि अंगुलि से जप करना उचित नहीं हैं। यहाँ कुछ लोग अंगुली के अग्रभाग का अर्थ नख करते हैं। अत: नख को सटाकर जप नहीं करना नहीं चाहिए। अंगूठे से निरन्तर जप करे तो मोक्ष-पद की प्राप्ति होती है। तर्जनी द्वारा जप करे तो शत्रु का नाश होता है। मध्यमा द्वारा जप करे तो सभी दास- वशगत हो जाते हैं। अनामिका द्वारा जप किया। भारतीय मनीषियों ने जप पर अनेक दृष्टियों से बड़ा सूक्ष्म चिंतन किया है। उस संदर्भ में मुनि श्री कुन्दकुन्दविजयजी ने 'नमस्कार चिंतामणि' में- “(१) रेचक, (२) पूरक, (३) कुंभक, (४) सात्विक, (५) राजसिक, (६) तामसिक, (७) स्थिरकृति, (८) स्मृति, (९)हक्का, (१०) नाद, (११) ध्यान, (१२) ध्येयकत्त्व और (१३) तत्त्व"२- जप के इन तेरह भेदों का उल्लेख किया है तथा प्रत्येक की व्याख्या की है। जप-तत्त्व को विशद रूप में जानने की इच्छा वालों के लिए यह विवेचन मननीय है। जप के अन्तर्गत ॐ-जप, हृदय-जप, नित्य-जप, काम्य-जप, प्रायश्चित्त-जप, अचल-जप, चल-जप, वाचिक-जप, उपांशु-जप, मानस-जप, अखंड-जप एवं अजपा-जप आदि का भी विवेचन हुआ है। “नाम-जप के साथ ध्यान जरूर होना चाहिए। वास्तव में नाम के साथ नामी की स्मति होना अनिवार्य भी है। मनुष्य जिस-जिस वस्तु के नाम का उच्चारण करता है, उस-उस वस्तु के स्वरूप की स्मति उसे अवश्य होती है और जैसी स्मृति होती है, उसी के अनुसार भला, बूरा परिणाम भी अवश्य होता है।" स्फटिक, संबंध तो या भाव के मनके बीर ने लगा दे रा नहीं में मन विधि सकता पर्य्यवगाहन णमोक्कार मंत्र तत्त्व-ज्ञान और आचार-दर्शन का दिव्य प्रतीक है। यह श्रुत का नवनीत है। इसका उत्कर्ष अध्यात्म-विकास की दृष्टि से सर्वातिशायी है। उत्तम वस्तु का प्रयोग उत्तम रीति से, | विधि से हो तो वह उत्तम फलप्रद होती है। उदाहरणार्थ- एक व्यक्ति को किसी दूसरे गाँव में पहुँचना है। उस गाँव की ओर जाने वाला एक मार्ग है। वह व्यक्ति यदि उस मार्ग का अवलंबन न लेकर गाँव की दिशा में उन्मार्ग से चलता जाए तो उसे पहुँचने में बहुत कठिनाई होती है, रास्ते में उबड़-खाबड़ जमीन, कंटीले पौधे आदि आते १. महामंत्रनां अजवाळा, पृष्ठ : १२०, १२१ २. नमस्कार-चिन्तामणि, पृष्ठ : ८७-८९. ३. मंत्र विज्ञान अने साधना रहस्य, पृष्ठ : १४०-१४७ ४. नाम जप (जयदयाल गोयन्दका), पृष्ठ : १४, १५. :४२. 60
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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