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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन ध्वनि का शब्दों का, अक्षरों का कितना बड़ा प्रभाव होता है, यह इस कविता के सारांश से प्रगट होता है । जब एक साधारण ध्वनि इतनी शक्ति का संचार कर सकती है तो मंत्रात्मक ध्वनि की शक्ति तो अपार होती है। इसीलिये मंत्र शक्ति की अद्भुत विशेषता स्वीकार की गयी है । मंत्र जप: उपयोग शब्द-शक्ति के सदुपयोग और दुरुपयोग से मनुष्य चिरकाल से परिचित है । जिसे जप का अनुभव नहीं, उसे यह क्रिया निरर्थक और यांत्रिक लगती है क्योंकि सत्य को जानने का और उसका परीक्षण करने का वैसे व्यक्तियों को अवसर ही नहीं मिलता। लोग अपना समय मात्र तर्क-वितर्क में व्यतीत करते हैं, इसलिये वे शब्द - शक्ति की महत्ता का और सदुपयोग का रहस्य नहीं समझ सकते । वास्तविकता यह है कि जैसे ही हम शब्द का उच्चारण करते हैं, वैसे ही वातावरण को आंदोलित एवं उत्तेजित करते हैं । तदनुसार हमारे मन में भाव उत्पन्न होते हैं । हम बार बार जिस भाव का | स्मरण करते हैं, वैसे ही भाव हमारे में उत्तरोत्तर प्रस्फुटित होते हैं। मंत्र के साथ इसे जोड़ना होगा किंतु एक बात को विशेष रूप से समझना होगा कि मंत्र की शुद्धता, प्रभावशालिता, प्रयोजकता एवं अनुभवसिद्धता के लिये उसे गुरु से ही ग्रहण करना उपयुक्त होता है । 'नवकार - यात्रा' नामक ग्रंथ में उल्लेख हुआ : "भारतीय मंत्र-विज्ञान के अनुसार प्रत्येक अक्षर अमुक गुप्त शक्ति का वाहक होता है । अक्षरों की शक्ति से संबंधित यह विद्या मातृका विद्या कहलाती है। महापुरुष अपनी एकाग्र बनी हुई संकल्प| शक्ति को अमुक शब्दों में आरोपित करते हैं । तब उन शब्दों के अक्षरों की सहज रूप में ऐसी स्थायी | प्रतिष्ठापना हो जाती है कि उन मिले हुए भिन्न-भिन्न अक्षरों की निकटता के कारण शक्तियों का बाहुल्य उत्पन्न हो जाता है। 'चिन्तनधारा' नामक पुस्तक में भी प्रतिपादित हुआ है : "मंत्र जप के अभ्यास से रजोगुण तमोगुणमूलक मल दूर होता है। इड़ा एवं पिंगला नाड़ियों | स्तंभित या स्थित हो जाती हैं। सुषुम्ना उद्घाटित हो जाती है। प्राणशक्ति की सहायता से शुद्ध हुई | मंत्र - शक्ति ऊर्ध्वगमन करती है । इस अवस्था में अनाहत नाद का अनुभव प्रारंभ हो जाता है, उसे मंत्र- चैतन्य का उन्मेष कहा जाता है । चैतन्य का अर्थ नाद-शक्ति का आविर्भाव है ।" “करोड़ गायों का दान, समुद्रवलयांकित पृथ्वी का दान, काशी, प्रयाग जैसे अत्यन्त पुण्य क्षेत्रों में कोटिकल्पपर्यन्त प्रवास तथा यज्ञसहित मेरुतुल्य स्वर्ण का दान ये के नामस्मरण के भगवान् पासंग से भी तुलित नहीं किए जा सकते अर्थात् नामस्मरण का पुण्य इन सबसे बढ़कर है। पुण्य १. नवकार यात्रा, पृष्ठ : १. २. चिन्तनधारा, पृष्ठ : ११२, ११३. ३. नामजपाचे महत्त्व, पृष्ठ : १८. 51 प TED 5 pi अ इर उ ब म
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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