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________________ सिद्ध पद और णमोक्कार-आराधना त्रित मातका-ध्वनियों की शक्ति मंत्र में सन्निविष्ट होती है। उनके य का है। ता है द्धिता नरंतर प्रकाश द की द्धिता शरीर ___ णमोक्कार मंत्र से ही मातृका-ध्वनियाँ निकली हैं। अत: समस्त मंत्रशास्त्र का प्रादुर्भाव णमोक्कार मंत्र से ही हुआ है। कहा गया है निर्बीजमक्षरं नास्ति'- अर्थात् ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जिसमें मंत्र-शक्ति न हो अथवा 'नास्ति अनक्षरो मंत्र:'- अर्थात् अक्षरों के बिना मंत्र नहीं है। ___ अक्षर और अक्षर के समूहात्मक शब्द में अपरिमित शक्ति विद्यमान है। आज सभी इसे स्वीकार करते हैं। जैसे गाना, बजाना, हंसना, रोना-ये वातावरण पर विशेष प्रकार का प्रभाव डालते हैं। ये ध्वन्यात्मक शब्द-शक्ति के ही रूप हैं। युद्ध में सैनिकों को उत्साहित करने के लिये 'मारू राग गाया जाता था। वह राग सैनिकों में इतना उत्साह भर देता कि वे जान हथेली पर लेकर शत्रुओं के साथ जूझ पड़ते थे। अंग्रेजी की एक कविता है, जिसका शीर्षक Trumpter (बिगुलवाला या तुरहीवाला) है। प्राचीन काल में सेनाओं के आगे बिगुल बजानेवाला व्यक्ति चलता था, जो शौर्योत्पादक संगीत की स्वर-लहरी में बिगुल बजाता था। ___ यूरोप की एक घटना है। दो देशों में युद्ध छिड़ा। एक देश की सेना पराजित होकर भाग छूटी। उस पक्ष के बिगुल बजाने वाले ने ओजपूर्ण संगीतात्मक बिगुल बजाया और प्रेरणा दी कि राष्ट्र की एवं जाति की प्रतिष्ठा के लिये योद्धाओं ! मर मिटो। यह मृत्यु जीवन से भी अधिक उत्तम है। बिगुलवाले के प्रेरक संगीत ने मैदान छोड़कर भागने वाले सैनिकों के मन में एक नया जोश पैदा कर दिया। वे वापस मुड़े और शत्रु-सेना से जूझ पड़े। दोनों पक्ष के सैनिक मारे गए। शत्रु-सेना ने उस बिगुलवाले को बंदी बनाया। उसे सैनिक-अदालत में प्रस्तुत किया गया, उसके लिये मृत्युदंड घोषित हुआ। उस बिगुलवाले ने बड़े अनुनय के साथ कहा कि मुझे क्यों मृत्यु दंड देते हो ? मैंने तो एक भी सैनिक नहीं मारा। मैंने तो केवल बिगुल बजाया। न्यायाधीश ने कहा- बिगुलवाले ! यह सही है कि तुमने एक भी व्यक्ति को नहीं मारा परंतु तुमने अपने बिगुल से अपने पक्ष के सैनिकों में जोश और उत्साह भर दिया। जो युद्ध समाप्त हो गया था, फिर से छिड़ गया। सहस्रों योद्धा मरे । उन सबकी मृत्यु के तुम ही जिम्मेदार हो। तुम यदि अपने | बिगुल की ओजस्विनी ध्वनि द्वारा सैनिकों को प्रोत्साहित नहीं करते तो पुन: युद्ध नहीं छिड़ता। क्या तुम नहीं समझते, जो कार्य तलवार नहीं कर सकती, वह ध्वनि कर सकती है। तुम ही एक मात्र अपराधी और दंडनीय हो। घर्षण है। सुनाई ह का कोई वहाँ 50
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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