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________________ णमो सिध्दाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन उनके पास दीक्षा ली, जो शैशवावस्था में ही था। उन्होंने दिव्य ज्ञान से जाना कि बालमुनि का आयुष्य केवल छह महिने का ही है। उन्होंने उसे आगमों का ज्ञान कराने के लिए इस सूत्र की रचना की। इसमें बड़े ही सरल और संक्षिप्त रूप में आगमों के सिद्धान्त एवं आचार वर्णित हैं। साधुचर्या के सम्यक् निर्वाह के लिये वास्तव में यह संक्षिप्त होते हुए भी बहुत उपयोगी कृति है। २. उत्तराध्ययन-सूत्र यह केवल मूल-सूत्रों में ही नहीं परन्तु समस्त आगम-साहित्य में एक बहुत उपयोगी रचना है। वैदिक साहित्य में 'गीता' का और बौद्ध साहित्य में 'धम्मपद' का जो स्थान है, जैन साहित्य में इसका वही स्थान है। आचार्य भद्रबाह ने इस पर नियुक्ति की रचना की। जिनदासगणी महत्तर ने इस पर चर्णि लिखी। और भी अनेक आचार्यों ने इस पर संस्कृत में टीकाएँ लिखीं। यह सूत्र साहित्यिक शैली में रचा गया है। काव्य की तरह इसमें रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, दृष्टांत, विभावना, विशेषोक्ति आदि अलंकारों का बहुत सुंदर प्रयोग हुआ है। काव्यात्मक शैली में संवाद तथा कथोपकथन इसमें बडे रोचक रूप में प्राप्त हैं। वैराग्य, त्याग, धैर्य, समत्व तथा संयम आदि का इसमें उपदेश दिया गया है। सुप्रसिद्ध जर्मन के विद्वान्, जैन आगमों के गहन अध्येता डॉ. विन्टरनीत्ज ने इसे श्रमण-काव्य कहा है। विषयों की विविधता और पूर्ण शैली के कारण यह बड़ा आकर्षक है। इसके ३६ अध्ययनों में अनेक महत्त्वपूर्ण उपाख्यान, कथानक आदि हैं। रथनेमि और राजीमती का प्रकरण बड़ा मार्मिक है। तेबीसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ की परंपरा के प्रमुख श्रमण केशीकुमार तथा भगवान् के प्रधान गणधर गौतम का पंच-महाव्रत एवं चातुर्याम-संवर आदि विषयों पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण वार्तालाप है। प्राकृत-व्याकरण के जर्मनी के सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ. पिशल ने दशवैकालिक-सूत्र और उत्तराध्ययन-सूत्र को भाषा की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण बतलाया है। जैन-परंपरा में ऐसा माना जाता है कि भगवान् महावीर जब अपने अंतिम समय में पावापुरी में थे, तब उन्होंने मोक्षगमन से पूर्व वहाँ उपस्थित अठारह देश के राजाओं आदि की परिषद् के समक्ष विपाक के ११७ और उत्तराध्ययन-सूत्र के छत्तीस अध्ययनों का सोलह प्रहर तक उपदेश किया था। उत्तराध्ययन में दो हजार एक सौ (२१००) श्लोक-प्रमाण सामग्री है। ३. नंदी-सूत्र विद्वानों का ऐसा अभिमत है कि नंदी-सूत्र और अनुयोगद्वार-सूत्र अन्य आगमों की तुलना में 28 HIRCLAHABAR । HINDI RBTHREE
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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