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सिद्धत्व- पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य
२. राजप्रश्नीय सूत्र
यह दूसरा उपांग है। राजप्रश्नीय सूत्र में एक राजा द्वारा किये गये प्रश्न हैं। सेविया (श्वेतांबिका) नगरी का प्रदेशी नामक राजा था। वह घोर नास्तिक था। आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, स्वर्ग, | पुण्य पाप आदि का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता था। पार्श्व परंपरा के महान् संत श्री केशीकुमार का उसे सान्निध्य प्राप्त हुआ। राजा द्वारा किये गये प्रश्नों का उन्होंने बहुत ही सुंदर एवं युक्तिपूर्ण समाध न किया। राजा आस्तिक बन गया। इस सूत्र में साम, दाम, दंड, भेद, कलाचार्य, शिल्पाचार्य, शास्त्र, मंत्र आदि तथा बहत्तर कलाओं का भी उल्लेख है ।
३. जीवाजीवाभिगम-सूत्र
यह तीसरा उपांग है। इसमें जीव और अजीव का अभिगम ज्ञान या विवेचन है। वस्तुतः ये दो ही मुख्य तत्त्व हैं, शेष तो इनका विस्तार हैं । इस आगम में गणधर गौतम और भगवान् महावीर के प्रश्नोत्तरों के रूप में जीव एवं अजीव तत्त्व के भेद-प्रभेदों का विस्तार से वर्णन है। इसमें ४७०० श्लोक प्रमाण सामग्री है। इस आगम में संस्कृति, कला, अढ़ाई द्वीप, चौबीस दंडक इत्यादि का वर्णन है।
४. प्रज्ञापना- सूत्र
यह चौथा उपांग है । इसकी रचना क्षमाचार्य ने की, ऐसा माना जाता है। इसमें जैन धर्म तथा | दर्शन के सिद्धांतों का बहुत ही विस्तार से विवेचन हुआ है। अंगों में जैसा व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र का स्थान है, वैसा ही उपांगों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
प्रज्ञापना का अर्थ विशेष रूप में ज्ञापित करना या ज्ञान करना है । इस सूत्र से सैकडों थोकड़े| तात्त्विक विवेचन - समुच्चय निःसृत हैं, जो इसमें व्याख्यात विषय - सामग्री के कारण सार्थक हैं। इसे एक प्रकार से ज्ञान-विज्ञान का कोष कह सकते हैं। इसमें साहित्य, इतिहास, भूगोल आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का उल्लेख है।
कर्म - आर्य, शिल्प - आर्य, भाषा-आर्य आदि आर्यों के भेदों का, पशु-पक्षी आदि के अनेक भेद-प्रभेदों का इसमें संकेत प्राप्त होता है। इसमें ७७८७ श्लोक प्रमाण सामग्री उपलब्ध है।
५. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र
यह पाँचवाँ उपांग है। जैन भूगोल के अनुसार वर्तमान जगत् जंबूद्वीप का एक भाग है। यह सूत्र दो भागों में विभक्त है। पूर्व भाग में चार और उत्तर भाग में तीन वक्षस्कार हैं। इसमें जंबूद्वीप, भरतक्षेत्र, इसके अंतर्गत विद्यमान पर्वत, नदी आदि का तथा उत्सर्पिणी; अवसर्पिणी कालचक्र आदि का विवेचन किया गया है ।
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