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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके प्रारंभ में 'णमोक्कार महामंत्र का मंगलाचरण के | रूप में उल्लेख हुआ है अंग सूत्रों में सबसे पहले णमोक्कार महामंत्र का प्रयोग इसी में पाते हैं।
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गोशालक का, जो भगवान् महावीर का शिष्य था, बाद में विद्रोही होकर जिसने नियतिवाद का सिद्धांत प्रचलित किया, इस आगम में जितना विस्तार से वर्णन है, वैसा अन्यत्र कहीं भी प्राप्त नहीं होता ।
भगवती - सूत्र को यदि जैन धर्म या दर्शन का विश्वकोश (Encyclopaedia ) कहा जाय तो भी कोई । अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
६. ज्ञातृधर्मकथासूत्र
इसमें दो श्रुतस्कंध हैं। पहले श्रुतस्कंध में उन्नीस अध्ययन हैं । दृष्टांतों के आधार पर तत्त्वों का विवेचन हुआ है। दूसरे श्रुतस्कंध में १० वर्ग हैं । उनमें कथानकों के आधार पर धर्म का विवेचन है । यह धर्मकथानुयोग का मुख्य ग्रंथ है।
७. उपासकदशांग-सूत्र
इस अंग में एक श्रुतस्कंध और दस अध्ययन है। जैन धर्म में गृहस्य अनुयायी को 'श्रमणोपासक ' कहा जाता है। भ्रमण का अर्थ साधु है। उपासक का अर्थ समीप बैठकर सुनने वाला होता है। गृहस्थ श्रमण से धर्म का उपदेश सुनता है, इसलिये वह उपासक कहा जाता है। इस आगम में ऐसे दस उपासकों का वर्णन है, जो भगवान् महावीर के प्रमुख अनुयायी थे।
पहले अध्ययन में आनंद श्रावक का विस्तार से वर्णन है। उसने भगवान् महावीर से जो व्रत लिये उनका विवेचन है, जो श्रावकों के लिये पठनीय हैं। आनंद श्रावक के वर्णन से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, व्यापारिक आदि लौकिक स्थितियों का परिचय प्राप्त होता है ।
आगे के अध्ययनों में जिन श्रावकों का वर्णन आया है, वे भी बड़े दृढधर्मी थे । बाधाएँ आने पर भी उन्होंने धर्म को नहीं छोड़ा। एक साधनाशील श्रावक का जीवन उत्तरोत्तर कितना निर्मल और पवित्र बनता जाता है, यह इस आगम के अध्ययन से ज्ञात होता है ।
८. अन्तकृद्दशा सूत्र
यह आठवाँ अंग सूत्र है जिन्होंने जन्म-मरण का अंत किया, उनका इसमें वर्णन है। कषायवर्जन और तपश्चरण की साधना से जन्म-मरण का अंत होता है, मोक्ष प्राप्त होता है । इस आगम का यही दिव्य संदेश है ।
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