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________________ सिद्धत्व-पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य | ENTISTRARIATomahi... किया है। इस आगम में जीव-अजीव आदि नौ तत्त्वों का विस्तृत विवेचन है। भाषा की दृष्टि से विद्वानों ने आचारांग के समान इसे प्राचीन बतलाया है। ३. स्थानांग-सूत्र यह तीसरा अंग है। यहाँ स्थान का अर्थ विभाग है। यह दस स्थानों में विभक्त है। इसमें संख्या के क्रम से विभिन्न विषयों का वर्णन है। जो पदार्थ संख्या में एक हैं, उनका पहले स्थान में तथा दो, तीन, चार से लेकर जो पदार्थ दस तक हैं, उनका क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे से लेकर दसवें तक के स्थानों में वर्णन है। बौद्ध साहित्य में भी अंगुत्तरनिकाय स्थानांग जैसा ही ग्रंथ है। स्थानांग में जीव, पुद्गल, ज्ञान, नय, प्रमाण, भवन, विमान, पर्वत, नदी, समुद्र, सूर्य आदि विभिन्न विषयों के संकेत प्राप्त हैं। ४. समवायांग-सूत्र समावायांग चौथा अंग सूत्र है। इसकी भी वर्णन-शैली स्थानांग की तरह है। स्थानांग में जहाँ एक से दस तक के पदार्थों का वर्णन है, वहाँ समवायांग में एक से सौ तक का वर्णन पाया जाता है। आगे बढ़ते-बढ़ते कोटानुकोटि पदार्थों तक का इसमें वर्णन है। स्थानांग में आया हुआ वर्णन विस्तृत समवायांग में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव रूप चारों दृष्टियों से विवेचन हुआ है। संख्या के आधार पर तत्त्वों को याद रखने की दृष्टि से स्थानांग और समवायांग का अध्येताओं के लिये बहुत महत्त्व है। | ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति-सूत्र अंग-साहित्य में यह पाँचवाँ अंग है। इसे भगवती भी कहा जाता है, जो पूज्यत्व या सम्मान का सूचक है। भगवान महावीर और गणधर गौतम के प्रश्नोत्तर के रूप में इसमें तत्त्वों की व्याख्या की गई है। इसमें एक श्रुतस्कंध, ४१ शतक, १००० उद्देशक और ३६००० प्रश्नोत्तर हैं, जिनमें अनेक विषय चर्चित हैं। यह आगम अत्यंत विशाल एवं समृद्ध है, इसमें द्रव्यानुयोगादि से संबंधित विषयों का विस्तार से वर्णन है। । इसमें भगवान् महावीर के जीवन का, उनके उपासकों का, अन्य धर्मनायकों तथा उनकी मान्याताओं का यथाप्रसंग वर्णन है। तत्त्व-दर्शन, आचार, लोक, परलोक तथा इनसे संबंधित प्राय: सभी महत्त्वपूर्ण विषय इसमें वर्णित हैं। यह एक प्रकार से तत्त्वज्ञान का विशाल समुद्र कहा जा सकता है। 21 BANK Biplaisle Pu Rai Alon 10
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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