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णमो सिध्दाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
BAHANE
महत्त्व नहीं है अपितु उस समय की सामाजिक व्यवस्था, रीति-नीति, व्यवसाय, खान-पान, रहन-सहन, कृषि, उस समय प्रचलित धार्मिक मान्यताएं आदि का भी वर्णन पाया जाता है। वैसा वर्णन बौद्धपिटकों के अतिरिक्त अन्य प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता।
वैदिक आदि अन्य वाङ्मय में प्राय: राजा, सामन्त, श्रेष्ठी, विशिष्ट जन, ऋषि-मुनि आदि उच्च वर्ग का विशेष रूप से वर्णन प्राप्त होता है।
जैनागमों का यहाँ संक्षेप में परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है
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अंग आगम १. आचारांग-सूत्र ___ अंग-साहित्य का यह प्रथम आगम है। इसमें संपक्त आचार शब्द से यह स्पष्ट होता है कि इसमें आचार का वर्णन है। आचार की दृष्टि से साधु जीवन सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि साधु के व्रत निरपवाद होते हैं। 'आचार' मोक्ष प्राप्ति का अनन्य अंग है।
आचारांग में दो श्रुतस्कंध हैं। पहले में नौ और दूसरे में सोलह अध्ययन हैं। इसके प्रथम श्रुतस्कंध के अन्तर्गत भगवान् महावीर की चर्या का वर्णन है। अत: ऐतिहासिक दृष्टि से इसका अत्यधिक महत्त्व हैं।
भाषा-शास्त्र की दृष्टि से आचारांग में प्रयुक्त भाषा अर्धमागधी का प्राचीन रूप है। जर्मनी के सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ. हर्मन जेकोबी ने भाषा की दृष्टि से आचारांग का बहुत महत्त्व माना है।
आचार्य शीलांक की इस सूत्र पर संस्कृत में महत्त्वपूर्ण टीका है। और भी व्याख्या-साहित्य इस पर प्राप्त होता है।
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२. सूत्रकृतांग-सूत्र ___यह दूसरा अंग-सूत्र है। इसमें दो श्रुतस्कंध हैं । दार्शनिक दृष्टि से इस आगम का बड़ा महत्त्व है। इसके प्रथम श्रुतस्कंध में अनेक वादों का वर्णन है, जिनमें पंचमहाभूतवाद, एकात्मषष्ठवाद, अकारकवाद, क्षणिकवाद आदि मुख्य हैं। ये प्राचीन वाद थे, जिनका भगवान महावीर के समय में प्रचार था। यद्यपि जो वर्णन आया है, उसके आधार पर उन वादों को आज के छह दर्शनों के साथ सीधा नहीं जोड़ा जा सकता किन्तु ऐसा लगता है कि उन दर्शनों के प्रारंभ में इसी प्रकार का स्वरूप रहा हो तथा उन्होंने तब तक सुव्यवस्थित रूप प्राप्त नहीं किया हो।
सूत्रकार ने इन दर्शनों का पूर्वपक्ष के रूप में वर्णन कर जैन दर्शन की यथार्थता का प्रतिपादन
Deet-SHARA
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RAJA