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________________ सिद्धत्व-पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य ज्ञान, सम्यक चारित्र, व्रत, संयम, वैयावृत्य, तप, कषाय-निग्रह आदि तथा पिंड-विशुद्धि, समिति, गुप्ति, भावना, प्रतिमा, इन्द्रिय-निग्रह, प्रतिलेखन तथा अभिग्रह आदि का विवेचन है। IFE २. धर्मकथानुयोग धर्मकथानुयोग में- दया, क्षमा, ऋजुता, मद्ता, दान, शील आदि धर्म के अंगों का विवेचन है। इसके लिये विशेष रूप से कथानकों या आख्यानों का आधार लिया गया है। ३. गणितानुयोग इसमें गणितानुयोग संबंधी विषयों का वर्णन है। सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, पृथ्वी तथा ग्रहों के गतिक्रम आदि का विवेचन है। मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी 'द्वितीय ने 'विश्व प्रहेलिका' नामक पुस्तक में विज्ञान, पाश्चात्य दर्शन एवं जैन दर्शन के आलोक में विश्व की वास्तविकता, आयतन व आय की मीमांसा के अन्तर्गत, दिगम्बर-परंपरा एवं श्वेताम्बर-परंपरा की मान्यता के अनुसार जो गाणितिक विवेचन किया है, उससे गणितानुयोग को समझने में बड़ी सहायता मिलती है। ४. द्रव्यानुयोग ___ इसमें जीव, अजीव आदि छह द्रव्यों और नव तत्त्वों का विस्तृत एवं सूक्ष्म विश्लेषण है। बत्तीस आगमों में चारों अनुयोगों से संबद्ध सामग्री को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के उपाध्याय, पंडित-रत्न श्री कन्हैयालालजी 'कमल' ने एक-एक अनुयोग के रूप में एक स्थान पर संग्रहीत कर पृथक्-पृथक् चार अनुयोगों के रूप में ग्रन्थ संपादित किये हैं, जो वस्तुत: विषयानुक्रम के आधार पर आगमों का अध्ययन करने वालों के लिये बहुत ही उपयोगी है। आगम-परिचय आगमों में सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र मूलक रत्नत्रय के आधार पर विविध विषयों का विश्लेषण हुआ है। उनमें धुओं के आचार, मर्यादा एवं दैनंदिन चर्या विषयक नियम, जीव, अजीव आदि तत्त्वों का, दृष्टांतों और कथानकों के आधार पर विश्लेषण तथा उस संदर्भ में जन-जीवन के विविध पक्षों का विस्तृत वर्णन है। भारत के प्राचीन साहित्य में आगमों का केवल जैन धर्म और दर्शन के विश्लेषण की दृष्टि से ही | १. विश्वप्रहेलिका, पृष्ठ : ९३-१२३. 19
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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