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________________ णमा सिध्दाण पद : समीक्षात्मक परिशीलन - SANE छेद आदि के रूप में विस्तृत वाङ्मय का सर्जन हुआ। उनकी संख्या के संबंध में सभी श्वेतांबर जैन संप्रदायों में एक मत नहीं हैं। श्वेतांबर-परंपरा में इस समय मुख्यत: मंदिरमार्गी, स्थानकवासी तथा तेरापंथी तीन संप्रदाय विद्यमान हैं। मंदिरमार्गियों में तपागच्छ और खरतरगच्छ के रूप में मुख्य दो शाखाएं हैं और अवांतर शाखाएं अनेक हैं। स्थानकवासी-परंपरा में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ, साधुमार्गी जैन संघ, कच्छ, सौराष्ट्र एवं गुजरात आदि के संप्रदाय इत्यादि कई शाखाएं हैं। सैद्धांतिक दृष्टि से कोई विशेष अंतर नहीं है। चर्या विषयक मान्यताओं में कहीं-कहीं अंतर है। ___ स्थानकवासी-संप्रदाय से लगभग २५० वर्ष पूर्व आचार्य रघुनाथजी से पृथक् होकर उनके शिष्य भीखणजी ने 'तेरापंथ की स्थापना की। मंदिरमार्गी संप्रदाय में आगमों की संख्या ४५ से ८४ तक मानी जाती है। स्थानकवासी और तेरापंथी बत्तीस आगमों को ही स्वीकार करते हैं। ये बत्तीस आगम तीनों संप्रदायों में सर्वथा स्वीकृत है। आचारांग आदि उपलब्ध ग्यारह अंगों के अतिरिक्त औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पूष्पिका, पुष्पचुलिका एवं वृष्णिदशा- ये बारह उपांग हैं। १. व्यवहार, २. बृहत्कल्प, ३. निशीथ, ४. दशाश्रुत स्कंध-- ये चार छेद सूत्र हैं। १. दशवैकालिक, २. उत्तराध्ययन, ३. नंदी, ४. अनुयोग द्वार- ये चार मूल तथा एक आवश्यक कुल मिलाकर बत्तीस आगम होते हैं। RS चार अनुयोग आगमों में आये हुए विषय, उनके भेद-प्रभेद, विवेचन-विश्लेषण आदि की दृष्टि से आचार्य आर्य रक्षितसूरि ने आगमों को चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग तथा द्रव्यानुयोग- इन चार अनुयोगों या विभागों में विभाजित किया। १. चरणकरणानुयोग चरणकरणानुयोग में वे आगम लिये गये हैं, जिनमें आत्मा के मूलगुण- सम्यक् दर्शन, सम्यक् | १. (क) जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पृष्ठ : २४. (ख) नमस्कार-चिन्तामणि, पृष्ठ : ६४.
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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