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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन वह शुद्धात्मस्वरूप ब्रह्म न तो कभी जन्म लेता है और न मरता ही है। वह न बढ़ता है और न घटता ही है। जितने भी परिवर्तनशील पदार्थ हैं, वह सब में है। देश, काल और वस्तु से अपरिछिन्न है, अविनाशी है। न वह उपलब्धि करने वाला है और न उपलब्धि का विषय ही है। केवल उपलब्धि-स्वरूप- ज्ञानस्वरूप है। जैसे प्राण तो एक ही रहता है, किन्तु स्थान-भेद से उसके अनेक नाम हो जाते हैं, वैसे ही सत्-ज्ञान एक होने पर भी इंद्रियों के कारण वह अनेक रूपों में विकल्पित होता है। आद्य शंकराचार्य ने परब्रह्म के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए कहा है- परब्रह्म सत्, अद्वितीय, शुद्ध, विज्ञानघन, निरंजन, निर्मल, शांत, आदि-अंत रहित, अक्रिय-क्रिया-शून्य तथा सदैव आनंद-रस स्वरूप है। वह समस्त माया-जनित भेदों से विवर्जित है। नित्य सुख-स्वरूप, निष्कल, अप्रमेय- प्रमाण का अविषय है। वह अरूप, अव्यक्त, अनाशय, अनाम एवं अव्यय, अक्षय तेज है, जो स्वयं ही प्रकाशित होता है। ज्ञानी जन इस परमतत्त्व को ज्ञाता, ज्ञान एवं ज्ञेय रूप त्रिपुटी से रहित, अनंत, निर्विकल्प, केवल, अखंड और चिन्मात्र- चैतन्य भाव मात्र परमतत्त्व के रूप में जानते हैं। ब्रह्म नित्य सुखमय, स्वप्रकाश, व्यापक, नामरूप का अधिष्ठान, बुद्धि द्वारा अबोध्य, बुद्धि का प्रकाशक, निर्मल तथा अपार है। 'विचार सागर:' में इस संबंध में विस्तार से वर्णन किया गया है। समीक्षा ___ ब्रह्म सर्वथा परिपूर्ण और शुद्ध है। वह अपरिवर्तनशील है। उसके स्वरूप में कभी कोई परिवर्तन | नहीं होता। वह सभी सांसारिक पदार्थों से विलक्षण है, असीम और अपार है। वह दु:खों से सर्वथा विमुक्त और परमानंद स्वरूप है। पिछले पष्ठों में सिद्ध के स्वरूप का विस्तार से विवेचन हआ है। सिद्ध शाश्वत, चिन्मय, परम आनंदमय, परमशुद्ध तत्त्व है, अलौकिक है। जिस प्रकार ब्रह्म को शब्दों द्वारा अव्याख्येय कहा गया है, वही बात सिद्धों पर घटित होती है। शब्दों द्वारा उनके स्वरूप का वर्णन नहीं किया जा सकता। शुद्ध स्वरूप की दृष्टि से ब्रह्म और सिद्ध में अंतर प्रतीत नहीं होता। आचार्य हरिभद्र सरि ने लिखा है सदा शिव: परं ब्रह्म, सिद्धात्मा तथतेति च । शब्दैस्तदुच्यतेऽन्वर्था देकमेवैबमादिभिः ।। १. एकादश स्कंध, अध्याय-१, श्लोक-३५, ३६, ३८. २. विवेक चूड़ामणि, श्लोक-२३९-२४१, पृष्ठ : ८२, ८३. ३. विचार सागरः, पृष्ठ : १-४. 435
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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