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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन निश्चय नयानुसार परम पदार्थ के अतिरिक्त आत्मा में अन्य सभी पदार्थों का अभाव है। इसलिए वह निर्द्वन्द्र इन्द्र-रहित है। प्रशस्त या शुभ, अप्रशस्त या अशुभ, राग, द्वेष, मोह का अभाव होने से आत्मा निर्मम - ममत्व रहित है। औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस् एवं कार्मण नामक पाँच प्रकार के शरीर का अभाव होने से आत्मा निष्कलंक या शरीर रहित है। परमात्मा के परद्रव्य का आलंबन नहीं है, इसलिए वह निरालंब है। मिध्यात्व, वेद, राग आदि परिग्रहों का अभाव होने से आत्मा निःराग राग रहित है। सहजावस्था या सहज ज्ञान द्वारा पवित्र होने के कारण वह निर्दोष है। सहज ज्ञान, सहज दर्शन, सहज चारित्र, सहज परम वीतराग सुख आदि के आधरभूत निज परम तत्त्व को जानने में सक्षम होने से आत्मा निर्मूड- मूढ़ता रहित है। समस्त पाप रूप दुर्धर्ष - शत्रुओं की सेना जिस में प्रवेश नहीं कर सकती, ऐसे अपने तत्त्व रूप महान् दुर्ग में निवास करने से वह निर्मल है वह निर्ग्रथ, नि:राग, निःशल्य, सकल दोष निर्मुक्त, निष्काम, निष्क्रोध, निर्मान तथा निर्मद है। शुद्ध 'जीवास्तिकाय बाहरी और भीतरी परिग्रह का परित्याग होने से निर्ग्रथ- ग्रंथि रहित या गांठ रहित है, समस्त मोहात्मक, रागात्मक, द्वेषात्मक वृत्तियों के नितांत अभाव के कारण निःराग है । निदान, माया और मिथ्यात्व रूप शल्यों के अभाव के कारण निःशल्य है । द्रव्य-कर्म, भाव- कर्म तथा नो-कर्म का अभाव होने के कारण वह सर्व दोष विवर्जित है । निज परम तत्त्व की भी वांछा न होने से निष्काम है। शुद्ध अंत: प्रशस्त, अप्रशस्त, समस्त पर द्रव्य परिणति का अभाव होने के कारण वह निष्क्रोध है । परम समरस-भाव होने के कारण वह निर्मान- मान-रहित है । नि:शेष रूप से - संपूर्णत: अंतर्मुख होने के कारण वह निर्मद- मद रहित है । विशुद्ध, सहज सिद्ध, नित्य-निरावरण, शुद्ध-आत्म-स्वरूप उपादेय है । १. नियमसार, गाया - ४२-४४, पृष्ठ: ३६-४५. 427
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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