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________________ णमो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक परिशीलन सूत्र समवायांग में इस संबंध में उल्लेख प्राप्त होता है कि भगवान् महावीर अर्धमागधी भाषा में धर्म का आख्यान करते हैं । उनके द्वारा धर्म देशना में प्रयुक्त अर्धमागधी भाषा सभी आर्य, अनार्य | पुरुषों के लिये तथा द्विपद दो पैरोंवाले तथा चतुष्पद चार पैरोंवाले मृग-पशु-पक्षी आदि के लिये एवं पेट के बल पर रेंगकर चलने वाले सर्प आदि प्राणियों के लिये उनकी अपनी-अपनी हितप्रद, कल्याणकर एवं सुखद भाषा के रूप में परिणित हो जाती है । समवायांग सूत्र का वर्णन भगवान् के भाषा अतिशय से संबद्ध है। उनकी अन्यान्य विशेषताओं के साथ भाषा की भी यह विशेषता थी कि योग- चल के कारण वह श्रोताओं को सहजतया उनकी अपनी-अपनी भाषाओं के रूप में स्वायत्त हो जाती थी । वे उसका भाव समझ लेते थे । यह विवेचन श्रद्धा और आस्था के साथ जुड़ा हुआ है, तर्क का विषय नहीं हैं । दशवैकालिक वृत्ति में भगवान् द्वारा धर्म सिद्धांतों का प्राकृत में निरूपण करने का उल्लेख है। बाल-स्त्री-वृद्ध-मूर्खाणां नृणां चारित्र - कांक्षिणाम् । अनुग्रहार्थं तत्त्व सिद्धांत: प्राकृतः कृतः । ।" चारित्र ग्रहण की अभिलाषा रखने वाले बालक, स्त्रियों, वृद्ध, अज्ञानी तथा अनपढ़ जनों पर | | अनुग्रह कृपा करने हेतु तत्त्वज्ञों ने धर्म-सिद्धांतों का निरूपण, प्राकृत भाषा में किया । जैसा बतलाया | गया है, अर्धमागधी प्राकृत का ही एक भेद है। प्राकृत को कुछ विद्वानों ने प्रकृति से संबद्ध बतलाया है । प्रकृति का तात्पर्य स्वभाव या स्वाभाविक स्थिति है । साथ ही साथ उसका एक अर्थ जगत् भी है। | जन-जन की स्वाभाविक भाषा होने के कारण उसका नाम प्राकृत पड़ा । । वैदिक, धार्मिक क्षेत्र में संस्कृत का व्यवहार होता था । भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि में यद्यपि संस्कृत उच्च भाषा है, किन्तु व्याकरणनिष्ठ होने के कारण जन साधारण तक उसकी पहुँच नहीं है। आम जनता उसे समझ नहीं सकती। इसलिये भगवान् महावीर ने अपनी धर्म देशना संस्कृत में न देकर प्राकृत में दी। वे तो सर्वज्ञ थे । संस्कृत भाषा के ज्ञान से परिपूर्ण थे परंतु उन्हें अपना पांडित्य प्रदर्शित नहीं करना था, लोगों का कल्याण करना था। यह भगवान् महावीर की भाषा के क्षेत्र में एक अभिनव | क्रांति थी । वे यथार्थ द्रष्टा थे । सत्य को जानते थे, परखते थे, उसका आचरण करते थे तथा औरों 1 से सदा आचरण कराने में प्रयत्नशील रहते थे। आचार्य हेमचंद्र ने अर्धमागधी को आर्य भाषा कहा है- 'ऋषीणामिदमार्थम्" यह आर्य शब्द की १. (क) समवायांग सूत्र समवाय-३४ सूत्र- २२, २३. (ख) प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृष्ठ ३२, ३३. २. दशवैकालिक - वृत्ति, पृष्ठ : २२३. ३. सिद्ध 14 शब्दानुशासन, अध्ययन-१, ३,
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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