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________________ सिद्धत्व- पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य विचारों का जगत् बड़ा विस्तीर्ण है। उसकी तुलना में भाषा की शक्ति सीमित होती है, इसलिये भाषा विचारों का समग्र रूप में तो प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती पर उनका बहुत कुछ आशय व्यक्त करने में वह सक्षम होती है। प्राचीन काल में वैयाकरणों ने भाषा पर बहुत विचार किया। आज के युग में भी भाषा - विज्ञान या भाषा शास्त्र (Linguistics) में भाषा तत्त्व पर बड़ा सूक्ष्म विचार किया गया है। भाषाओं के अनेक परिवार (Language Families) स्वीकार किये गये हैं, जिनमें से एक-एक परिवार के साथ अनेक भाषाएं जुड़ी हुई हैं। उत्तर भारत में प्राचीन काल में प्रयुक्त संस्कृत, प्राकृत, पालि तथा अपभ्रंश आदि एवं वर्तमान युग में प्रवृत्त हिंदी, पंजाबी, काश्मीरी, डोंगरी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, बंगला, असमिया तथा उड़िया आदि भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार (Indo-European Language Family) के अंतर्गत हैं । दक्षिण भारत में प्रचलित तमिल, तेलगू, कन्नड़ तथा मलयालम आदि भाषाएं द्रविड़ भाषा परिवार (Dravedian Language Family) के अंतर्गत समाविष्ट हैं। भगवान् महावीर के समय में उत्तर भारत में लोंगों की बोलचाल की भाषा के रूप में भाषा का प्रयोग होता था। जन-जन द्वारा बोले जाने के कारण तथा क्षेत्रीय भिन्नता के आधार पर प्राकृत | इसके मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची आदि मुख्य भेद थे । भगवान् महावीर उत्तर भारत के पूर्वाचल में उत्पन्न हुए थे, जहाँ मागधी और अर्धमागधी का प्रचार था अर्धमागधी, मागधी तथा शीरसेनी के बीच की भाषा है। उसमें कुछ नियम मागधी के तथा कुछ नियम शौरसेनी के लागू होते हैं। इस प्रकार वह मागधी और शीरसेनी दोनों भाषाओं के क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों द्वारा समझी जा सकती थी । इस प्रकार वह उस समय प्राकृत क्षेत्र की एक प्रकार से संपर्क - भाषा (Lingua Franca) के रूप में प्रयुक्त थी, जो बाद में भी कुछ शताब्दियों तक | चलती रही। कुछ विद्वानों का ऐसा मन्तव्य है कि अशोक के शिलालेखों की मूल भाषा अर्धमागधी ही | है, जिसका भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के स्थानीय रूपों में यत्किंचित् परिवर्तन कर प्रयोग किया गया । अर्द्धमागधी में भगवान् द्वारा धर्म देशना भगवान् महावीर ने अपनी धर्म देशना का माध्यम अर्धमागधी भाषा को बनाया, जिस तक जनसाधारण आम जनता की सीधी पहुँच थी, जिसे सभी लोग समझने में सक्षम थे।" १. भाषा-विज्ञान (डॉ. भोलानाथ तिवारी) पृष्ठ १७८. 13 २. नवकार - प्रभावना, पृष्ठ ७.
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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