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________________ णमो सिध्दाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन १. ध्याता- ध्यान करने वाले की योग्यता किस प्रकार की हो ? २. ध्येय- जिसका ध्यान किया जाय, वह कैसा हो ? ३. ध्यान की कारण सामग्री कैसी हो? क्योंकि सामग्री के बिना कोई भी कार्य सफल नहीं होता। ध्याता की योग्यता जो प्राण-नाश होने का प्रसंग आ जाए तो भी संयम-निष्ठा का परित्याग नहीं करता, जगत के समस्त प्राणियों को अपने सदृश समझता है, अपने लक्ष्य से, ध्येय से हटता नहीं, शैत्य, ऊष्मा तथा वाय आदि से खिन्न, दुखित नहीं होता, रागादि दोषों से जो अभिभूत नहीं होता क्रोध आदि कषायों से विरत होता है, कर्मों में लिप्त नहीं होता, भोग-वासना से जिसके मन में वैराग्य होता है, जो अपनी देह पर भी मूर्छा या ममत्व नहीं रखता, अनुकूल, प्रतिकूल सभी परिस्थितियों में समभाव रखता है, प्राणी-मात्र के कल्याण की वांछा रखता है, सबके प्रति करुणाशील होता है, सांसारिक भोगों से विमुख रहता है, विघ्न और उपसर्ग आने पर जो सुमेरू की तरह अडिग रहता है, वैसा प्रबुद्ध साधक ध्याता होता है। Mai ध्येय का स्वरूप आचार्य हेमचंद्र ने योगशास्त्र में ध्यान के आलंबनमूलक ध्येय के आधार पर इसे चार प्रकार का बताया है। पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ एवं रूपातीत। १. पिंडस्थ ध्यान एवं धारणाएँ जहाँ किसी पिंड या मूर्त प्रतीक को आधार मानकर, ध्यान किया जाता है, वह पिंडस्थ ध्यान कहा जाता है। इस ध्यान को प्राप्त करने की मानसिकता अर्जित करने के लिए आचार्य हेमचंद्र ने धारणाओं के रूप में एक विशिष्ट मार्ग प्रशस्त किया। धारणा का अर्थ मन में धारित, भावित या अनुचिंतित करना है। १. पार्थिवी, २. आग्नेयी, ३. मारुती, ४. वारुणी, ५. तत्त्वभू- पिंडस्थ ध्यान की ये पाँच धारणाएँ हैं। क्रमश: पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल तथा देहगत धातुओं से रहित आत्मा उनके आधार या अवलंबन १. योगशास्त्र, प्रकाश-७, श्लोक-१. ३. (क) योगशास्त्र, प्रकाश-७, श्लोक-९. (ग) जैन धर्म में तप, पृष्ठ : ४३२-४३५. २. योगशास्त्र, प्रकाश-७, श्लोक-२-७. (ख) ध्यान जागरण, पृष्ठ : ७०. 404
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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