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________________ जैन-योग पद्धति द्वारा सिद्धत्व की साधना भ्यास य में हार ना है । की त्याग जाता धारणा का लक्षण महर्षि पतंजलि ने धारणा का लक्षण बताते हुए लिखा है कि नाभि-चक्र, हृदय-कमल आदि देह के आंतरिक स्थानों और आकाश, सूर्य, चंद्रमा आदि बाहर के पदार्थों में से किसी एक पर चित्त-वृत्ति को लगाना धारणा है। कांतादृष्टि की विशेषताएं इस दृष्टि में विद्यमान योगी धर्म की महिमा को बहुमान देता है। सम्यक् आचार की विशुद्धि में जागरूक रहता है। उसका मन धर्म में एकाग्र या तन्मय होता है। आत्म-धर्म में उसकी भावना इतनी दृढ़ होती है कि उसका देह अन्यान्य कार्यों में संलग्न होने पर भी मन गुरुजन से सुने हुए, सीखे हुए आगम-ज्ञान में तल्लीन रहता है, दिव्य ज्ञानानुभूति से युक्त रहता है। आत्म-भाव की ओर आकृष्ट रहता है। अनासक्त-भाव से वह सांसारिक कार्य करता है। अत: सांसारिक भोग उसके भव-भ्रमण के हेतु नहीं बनते। अनासक्त कर्मयोग के साथ समन्वय गीता में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग का विशद विवेचन है। गीता के कर्मयोग का अनेक विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से विवेचन किया है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का 'कर्मयोग-शास्त्र' के नाम से मराठी में गीता का जो विश्लेषण प्राप्त है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आचार्य विनाबा भावे ने भी 'गीता-प्रवचन' के रूप में बहुत ही मार्मिक विवेचन किया है। __गीता में योगिराज श्री कृष्ण अर्जुन को संबोधित कर कहते है कि अर्जुन ! कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, उसके फल में नहीं। इसलिए कर्म करते समय तुम उसके फल के हेतु मत बनो। फल में आसक्ति मत रखो। आसक्ति का त्याग कर तथा सफलता और असफलता को एक समान समझते हुए जो कर्तव्य-बुद्धि से कर्म किया जाता है, वह 'समत्व-योग' कहलाता है। नेथ्या प्राप्त ने हो कोई गया म्यक मन ७. प्रभादृष्टि प्रभादृष्टि में साधक ध्यान-प्रिय होता है। योग का सातवाँ अंग ध्यान इसमें सिद्ध हो जाता है। | राग, द्वेष एवं मोह इन तीन दोषों से जनित भव रोग यहाँ बाधा नहीं देते। अर्थात् राग-द्वेष मोहात्मक १. योगसूत्र, विभूतिपाद, सूत्र-२. | ३. श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय-२, श्लोक-४७. २. योगदृष्टि समुच्चय, श्लोक-१६३, १६४. 391
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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