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________________ णमो सिध्दाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन जन उसे गर-अनुष्ठान कहते हैं। गर वह विष होता है, जो धीरे-धीरे असर करता है। गर-अनुष्ठान भोगमय वासना के कारण भवांतर में आत्मा के लिए दुःख एवं पतन का हेतु बनता है। विमर्श हैं। वह ३. अननुष्ठान जिसका मन संप्रमुग्ध होता है, अत्यधिक मोह के कारण पदार्थ के वास्तविक स्वरूप का निश्चय कर पाने में अक्षम होता है, ऐसे व्यक्ति द्वारा उपयोग के बिना केवल देखा-देखी जो अनुष्ठान किया। जाता है, वह अननुष्ठान कहा जाता है। _अननुष्ठान कहे जाने का तात्पर्य यह है कि वह अनुष्ठान होते हुए भी न होने के समान है, निरर्थक है। पुण्यात्म है। कर घोर अ किए ज दादा an ४. तद्हेतु-अनुष्ठान जहाँ साधक के मन में व्रतादि उत्तम कार्यों के प्रति राग या अनुरक्तता बनी रहती है, अर्थात रागादि से प्रेरित होकर जहाँ साधक सद्-अनुष्ठान में लगता है, वह तद्हेतु-अनुष्ठान है। वह योग का उत्तम हेतु है, क्योंकि उसमें शुभ-भाव विद्यमान रहते हैं। कालुष्य भावना पर अ. साधना ५. अमृत-अनुष्ठान जिस अनुष्ठान के प्रति साधक के मन में आत्मभाव, संवेग, भववैराग्य तथा मोक्षोन्मुखता जुड़ी रहती है, जो जिनेश्वर देव द्वारा प्रतिपादित हैं, अंतिम मुनि-पुंगव उसे अमृत-अनुष्ठान कहते हैं। जब जीव अंतिम पुद्गल-परावर्त में होता है, तब गुरु, अरिहंत, देव आदि की सेवा प्रभृति जो अनुष्ठान किए जाते हैं, वे उन अनुष्ठानों से भिन्न होते हैं, जो अंतिम पुद्गल-परावर्त से पहले के पुद्गल- परावर्तों में किए जाते हैं। दोनों अनुष्ठानों में कर्ता का भेद है। चरम पुद्गल-परावर्त से पहले के पुद्गल-परावर्तो में कर्ता अत्यंत संसारासक्त होता है, किंतु अंतिम पुद्गल-परावर्त में कर्ता संसार में रहता हुआ भी धर्म की ओर उन्मुख होता है। दोनों में यह भेद है। विश्वा यह ये वह भ निष्णा जहाँ। योगा सरचन जो साधक अंतिम पद्गल-परावर्त में स्थित होता है, वह योग की आराधना में अपनी विशिष्ट योग्यता के कारण उन व्यक्तियों से भिन्न होता है, जो अंतिम पुद्गल-परावर्त से पूर्व के पुद्गल-परावर्ती में होते हैं। इस पर सम्यक् चिंतन करें। ध्यान लिये | ध्यान १. योगबिंदु, श्लोक-१५३-१६५. 362
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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