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________________ EARNER FAR RE S ENIORRETA णमो सिध्दाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन R HA PAHARANASIKH MARRAIMARATDISHARADASIRAINRITERATORRORSE THREOGRAANARAYALAYEHATREATU MARAanemaSHNICANKARINIST A ANIREON E EDITORImanna UPREMNSARASHRECAMERIORamnamaAVIORRORSCORRUKHA Rasmalamanna A swamananानी RDASTARAKHAND NTEERUTARE NETRIOSRAMMANDER R IA उन्होंने मध्यम प्रतिपदा के रूप में साधना का मार्ग बताया। अर्थात् उन्होंने न तो अधिक सरल, न ही अधिक कठिन; मध्यम (बीच का) मार्ग स्वीकार किया, जिस पर चलने में साधारण लोगों को भी कठिनाई न हो। उन्होंने भिक्षुसंघ की स्थापना की, जिसमें भिक्षु और भिक्षुणियों का समावेश था। उनका कार्यक्षेत्र वह प्रदेश रहा, जो आज 'बिहार' कहलाता है। ___बौद्ध-परंपरा में जहाँ साधु-भिक्षु ठहरते हैं- प्रवास करते हैं, उसे विहार कहा जाता है। भगवान् बद्ध के समय में उस प्रदेश में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार था। स्थान-स्थान पर भिक्षुओं के ठहरने के लिये विहार बने हुए थे। बौद्ध-विहारों की बहुलता के कारण ही वह प्रदेश 'बिहार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान् बुद्ध ने स्वयं अपने हाथ से कुछ नहीं लिखा। किसी ग्रंथ की संरचना नहीं की। उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों को स्मरण रखा, उसे लिखा। लिखकर सुरक्षा के लिये पिटकों- पेटियों में रखा इसलिये इन्हें 'पिटक' कहा गया। पिटक तीन हैं- विनय-पिटक, सुत्त-पिटक तथा अभिधम्मपिटक। इतिहास के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध दोनों समसामयिक महापुरुष थे। दोनों का विचरण क्षेत्र भी अधिकांशत: बिहार रहा किंतु दोनों के मिलन का प्रसंग नहीं बना। इसका क्या कारण रहा, कुछ कहा नहीं जा सकता। भगवान् बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् चंद्रगुप्त मौर्य के पौत्र सम्राट अशोक के प्रयत्न से बौद्ध धर्म का भारत के अतिरिक्त बाहर के देशों में भी प्रचार-प्रसार हुआ। आज भी विश्व के अनेक देशों में | बौद्ध धर्मावलंबी बड़ी संख्या में हैं। जैन-संस्कृति श्रमण-संस्कृति के अंतर्गत जैन-संस्कृति का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज एक मात्र यही संस्कृति अपने पुरातन रूप में अक्षुण्णतया प्राप्त है। एक समय था, बौद्ध परंपरा के अंतर्गत भिक्षु और भिक्षुणियाँ अपने विनय और आचार के नियमों का पालन करते हुए देश में पैदल भ्रमण करते थे। बौद्ध धर्म में विनय शब्द आचार का वाचक है। आचार-संहिता के सभी नियम, उपनियम जो भिक्षुओं द्वारा पालनीय हैं, वे विनय में समाविष्ट हैं। ज्यों-ज्यों समय व्यतीत होता गया, बौद्ध धर्म का बाहर बहुत प्रचार हुआ किन्तु उसका मूल स्वरूप उत्तरोत्तर सिमटता गया। आज विश्व के अनेक देशों में बौद्ध भिक्षु बड़ी संख्या में हैं किंतु भगवान् बुद्ध के समय में जो आचार-संहिता, पाद-विहार आदि चर्यामूलक उपक्रम थे, वे आज प्राप्त नहीं होते किन्तु जैन साधु-साध्वियों का जीवन, सहस्रों वर्षों पूर्व जो आचार-परंपरा प्रचलित थी, उसके नियमों से निबद्ध है। ____ कुछ एक वैयक्तिक अपवादों को छोड़कर प्राय: सभी साधु-साध्वी जो सहस्रों की संख्या में हैं, वे REETERINTENDED
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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