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________________ सिद्धत्व-पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य और बादरायण का उत्तर मीमांसा अथवा वेदांत-ये सब वैदिक दर्शन के नाम से जाने जाते हैं क्योंकि ये वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार करते हैं।"१ जो ज्ञान व्याख्यात । किसी ज उद्योत परमात्मा ष्टा नहीं किया। ण्ड तथा रमात्मा, ता, सत्य अर्थात् जीवन, था लीन पा है। पर किये श्रमण-संस्कृति श्रमण' शब्द मूलत: प्राकृत के 'समण' शब्द का संस्कृत रूप है। समण में विद्यमान सम के 'सम', 'शम' और 'श्रम' ये तीन रूप होते हैं। 'सम' का अर्थ समत्व या समता है, जो संसार के प्राणी मात्र के प्रति समानता के भाव पर आधारित है। प्राणित्व के नाते संसार के छोटे-बड़े, पशु-पक्षी, कीट-कीटाणु, मनुष्य आदि समान हैं। सबको जीने का अधिकार है। उसके अधिकार को छीनना, किसी प्राणी की हिंसा करना अविहित, अनुचित है। 'शम' का अर्थ निर्वेद, वैराग्य या प्रशांत भाव है। यह तत्त्वातत्त्व विवेक तथा तदनुकूल, | सत्यानुरंजित चर्या से सिद्ध होता है। ___ 'श्रम' का अर्थ उद्यम, अध्यवसाय, प्रयत्न या क्रियाशीलता है। जीवन का परम लक्ष्य अपने पुरुषार्थ से ही सिद्ध होता है, किसी की कृपा या अनुग्रह से नहीं। श्रमण-संस्कृति के ये मुख्य तीन आधार हैं। इन तीनों से ही ऐहिक और पारलौकिक जीवन सफल होता है। इसका निष्कर्ष यह है कि जीवन में ज्ञान परमावश्यक है किंतु ज्ञान की सफलता या सार्थकता तभी सिद्ध होती हैं, जब वह उसके कार्य-कलापों में व्याप्त हो सके। इसका तात्पर्य यह है कि श्रमण-संस्कृति केवल ज्ञान पर ही जोर नहीं देती अपित क्रिया पर भी बल देती है। वहाँ जन्माश्रित जातिवाद का महत्त्व नहीं है। कोई व्यक्ति उच्च वंश, उच्च जाति में उत्पन्न होने से ही ऊँचा नहीं होता किंतु वह अपने उच्च पवित्र सात्त्विक कर्मों से ही ऊँचा होता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र भी कर्मों से ही होता है। श्रमण-संस्कृति की मुख्य दो धाराएं हैं - १. बौद्ध-संस्कृति, २. जैन-संस्कृति । १. बौद्ध-संस्कृति सामान्यत: यह माना जाता है कि भगवान बद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की। वे कपिलवस्त के राजकुमार थे। उनका नाम सिद्धार्थ था। संसार को दुःखपूर्ण देखकर उन्हें वैराग्य हुआ। उन्होंने माता, पिता, पत्नी, पुत्र आदि परिवार तथा राज्य-वैभव का त्याग कर सत्य की खोज हेतु महाभिनिष्क्रमण किया। साधना द्वारा जब उन्होंने सम्यक् बोध प्राप्त किया, तब वे बुद्ध कहलाये। A DDREAMSINDURATRAancharacauERTAaweserved Alwakalvanialists SHR 'वेदांत त नहीं "महर्षि पीमांसा 50550salinesibiliririkakilinskinichitnishaantibbatiotislaMindTATAS १. भारतीय दर्शन (डॉ. राधाकृष्णन्), भाग-२, पृष्ठ : १७.
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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