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________________ णमो सिध्दाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन वैदिक संस्कृति वैदिक संस्कृति का मुख्य आधार वेद हैं । वेद शब्द संस्कृत की 'विद्' धातु से बना है, जो ज्ञान के अर्थ में है। वेद उस वाङ्मय का सूचक है, जिसमें ज्ञान-विज्ञान के अनेक महत्त्वपूर्ण विषय व्याख्यात हुए हैं। वैदिक धर्मानुयायियों की वेदों के संबंध में यह मान्यता है कि वेद अपौरूषेय हैं। किसी सांसारिक पुरुष या व्यक्ति द्वारा रचित नहीं हैं। परब्रह्म परमात्मा ने ऋषियों के मन में ज्ञान का उद्योत किया। उसके आधार पर ऋषियों ने ऋचाओं और मंत्रों की संयोजना की अर्थात् यह परब्रह्म परमात्मा का ज्ञानमय संदेश है। ऋषि केवल उसके संप्रेषण के माध्यम बनें । इसलिये ऋषि मंत्रों के स्रष्टा नहीं हैं, द्रष्टा हैं। उन्होंने परमात्मा द्वारा संप्रेषित, उद्योतित तत्त्वों का दर्शन किया और उन्हें प्रकट किया। वेद चार हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों में कर्म-काण्ड, ज्ञान-काण्ड तथा उपासना-काण्ड- मुख्यत: तीन काण्ड हैं। कर्म-काण्ड- यज्ञ आदि पर, ज्ञान-काण्ड- आत्मा, परमात्मा, लोक, परलोक आदि पर तथा उपासना-काण्ड- परमात्माराधना पर प्रकाश डालता है। वेदों के अतिरिक्त स्मतियाँ, पुराण, इतिहास, दर्शन आदि विपुल साहित्य प्राप्त है। अहिंसा, सत्य और सदाचार के पालन का उनमें संदेश दिया गया है। वैदिक धर्म में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास- ये चार आश्रम माने गये हैं। अर्थात् मनुष्य के जीवन को चार भागों में बांटा गया है। पहले में विद्याध्ययन, दूसरे में गहस्थ का जीवन, तीसरे में परमात्माराधना का अभ्यास, चौथे में संन्यास सर्वस्व त्याग तथा परमात्म-भाव में सर्वथा लीन होने का उपक्रम स्वीकार किया गया है। ईश्वर को सर्वव्यापी और जगत् का स्रष्टा माना गया है। वेदों का ज्ञानकांड वेदांत कहलाता है। उसमें ब्रह्म, जीव और माया- ये तीन तत्त्व स्वीकार किये गये हैं। इस सम्बन्ध में एक बहुत प्रसिद्ध उक्ति है श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि, यदुक्तं ग्रन्थ-कोटिभि: । ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नाऽपरः।। ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या, असत्य या भांति है। जीव ब्रह्म- परमात्म-स्वरूप ही है। यह वेदांत का सार तत्त्व या निष्कर्ष है। वेदांत 'ज्ञान' पर सबसे अधिक जोर देता है- 'ऋते ज्ञानान्न मुक्ति:'- ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं हो सकती। भारत में संख्या की दृष्टि से वैदिक-परंपरा के अनुयायियों का सर्वाधिक विस्तार है। विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के अनुसार- "महर्षि गौतम का न्याय, कणाद का वैशेषिक, कपिल का सांख्य, पतंजलि का योग, जैमिनी का पूर्व मीमांसा
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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