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________________ BACHAR Page R णामा सिद्धाण पदई समीक्षात्मक अनशीलन समुच्छिन्न-क्रिया-अनिवृत्ति शुक्ल-ध्यान द्वारा आत्मा सुमेरु पर्वत की तरह निष्प्रकंप बनकर स्व-स्वरूप में अधिष्ठित हो जाती है। अंत में आत्मा देह का त्याग कर लोकोत्तर स्थान प्राप्त कर लेती है। यही परम शुद्धि, पूर्णता, कृत-कृत्यता तथा अव्याबाध आनंद का अविचल स्थान है। 'ज्ञानसार' में इस अवस्था का वर्णन करते हुए कह गया है- “त्याग परायण साधक को अंतत: सभी योग छोड़ देने होते हैं, मेघ-शून्य गगन में चमकते हुए चंद्र की तरह तब साधक की आत्मा अपने संपूर्ण शुद्ध स्वरूप में व्यक्त होती है।" गुणस्थानों का कालमान चौदह गुणस्थानों की काल-स्थिति के संबंध में शास्त्रों में जो वर्णन आया है, तदनुसार प्रथम गुणस्थान की कोई निश्चित अवधि नहीं है। इसे समुद्र के साथ उपमित किया गया है, जब कि अन्य | अवस्थाओं की छोटे जलाशयों के साथ तुलना की गई है। अभव्य जीवों के लिए जिनमें मोक्षोपयोगी योग्यता का सर्वथा अभाव होता है, जीवों के लिए यह अवस्था अनादि अनंत है अर्थात् अनादिकाल से मिथ्यात्व के गर्त में वे फंसे हुए हैं, जिसका कोई अंत नहीं है। भव्य जीवों के लिए यह अवधि अनादि सांत है। उसकी सांतता आत्मा के अपने कर्मों के क्षय, उपशम तथा उसके अपने पराक्रम और पुरुषार्थ पर निर्भर है, जिसमें विभिन्न आत्माओं की योग्यता के अनुसार तरतमता रहती है। दूसरे गुणस्थान का कालमान छ: अवलिका, तीसरे गुणस्थान का अंतर्मुहूर्त, चौथे गुणस्थान का तैंतीस सागर से कुछ अधिक, पाँचवें-छठे गुणस्थान का कुछ कम करोड़ पूर्व तथा सातवें से बारहवें तक का अंतर्मुहूर्त, तेरहवें गुणस्थान का कुछ कम करोड़ पूर्व तथा चौदहवें का अ, इ, उ, ऋ, लु इन पाँच हस्व अक्षरों के उच्चारण जितना समय है। ACuilth आत्मा की तीन अवस्थाएं गुणस्थानों और उनकी अन्तर्वर्तिनी स्थितियों का बहिरात्मावस्था, अंतरात्मावस्था तथा परमात्मावस्था के रूप में उल्लेख हुआ है। २. जीव-अजीव, पृष्ठ : ७२. १. ज्ञानसार (त्यागाष्टक) श्लोक : ७, ८. ३. जैन धर्म : अर्हत् और अर्हताएं, पृष्ठ : २५४. 338 s Prasard
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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