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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन १२. सम्यक्त्व के स्थान सम्यक्त्व की सुस्थिरता के लिये छ: स्थान या तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं, जिनका परिशीलन सम्यक्त्वी के लिए सर्वथा आवश्यक और उपयोगी है। वे छ: स्थान इस प्रकार हैं १. आत्मा का अस्तित्व है। २. आत्मा द्रव्यापेक्षया नित्य है। ३. आत्मा कर्मों की कर्ता है। ४. आत्मा अपने किये हुए कर्मों को भोगने वाली है। ५. आत्मा मुक्त होती है। ६. मुक्त होने का सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र, सम्यक् तप रूप मार्ग है। समीक्षा संसार में धर्म के संबंध में दो प्रकार के वाद प्रचलित हैं- १. आस्तिकवाद, २. नास्तिकवाद । इन दोनों का आधार आत्मा को स्वीकार करना और अस्वीकार करना है। आस्तिक आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करते हैं। नास्तिक आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार नहीं करते। वे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश-इन पाँच तत्त्वों से निर्मित शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। उनका अभिमत है कि इन पाँच तत्त्वों के सम्मिलन-सम्मिश्रण से चेतना उत्पन्न होती है। जब वह सम्मिलन बिखर जाता है, तब चेतना नष्ट हो जाती है। आत्मा का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता। अस्तित्ववादी आत्मा को स्वतन्त्र तत्त्व मानते हैं। वह शाश्वत और अविनश्वर है। आत्मा के अस्तित्व पर ही पुण्य, पाप, धर्म, अधर्म, स्वर्ग, नरक, मोक्ष आदि टिके हैं। यदि आत्मा को ही न माना जाए तो इन तत्वों को मानने का कोई अवकाश नहीं रहता। सम्यक्त्वी के लिए सबसे पहले आवश्यक है कि वह सम्यक्त्व में दृढ़ आस्थावान् हो। उसे आत्मा के अस्तित्व में जरा भी संशय- संदेह न हो। यदि वैसा संदेह होगा तो सम्यक्त्व टिक ही नहीं पाएगा। दूसरा पक्ष आत्मा के नित्यत्व, अनित्यत्व का है। प्राणियों को लोग मरते हए देखते हैं। जिनको यथार्थ बोध नहीं होता, वे मानते हैं कि उनकी आत्माएं मर गईं। उनका यह मानना तथ्य-रहित है। १. जिणधम्मो, पृष्ठ : ११८. 326
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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