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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनशीलन
बढ़ता है, जो आत्म-कल्याण में सहायक होता है। सम्यक्त्वी, मिथ्या-दृष्टि-जनों के साथ संलापन करे। उनके साथ घनिष्ठता बढ़ाना सम्यक्त्व के लिए हानिकारक हो सकता है।
५. दान
अनुकंपा की तरह दान का भी बड़ा महत्त्व है। दान के संदर्भ में सम्यक्त्वी का यह कर्तव्य है कि वह दुःखित, पीडित, अनाथ, दरिद्र, विकलांग आदि जनों को करुणा, अनुकंपा बुद्धि से दान दे, उनका सहयोग करे, पर उसके मन में ऐसा भाव न रहे कि उसके द्वारा दिया गया दान मोक्ष का हेतु है। यह पुण्यात्मक कार्य है, इस भाव से वह करे।
सम्यक्त्व-संपन्न जीवों को भोजन आदि उपयोगी वस्तुओं का सहयोग करना, साधर्मिक जनों की अपनी शक्ति के अनुसार सहायता करना सम्यक्त्वी का कर्तव्य है।
६. मान ___ मान का अर्थ सम्मान या सत्कार है। सम्यक्त्वी पुरुष उन्हीं का सम्मान करे, जो सम्यक्त्वी और सद्धार्मिक हों। इससे वे जिनका सम्मान किया जाता है, सम्यक्त्व में सुदृढ़ बनते हैं। मिथ्या दृष्टियों का सम्मान करना, उनको धार्मिक दृष्टि से गौरव देना सम्यक्त्वी के लिए अविहित है, क्योंकि ऐसा होने | से मिथ्यात्व को बल मिलता है। सम्यक्त्वी का सम्मान करने से उस ओर लोगों का आकर्षण होता है, अभिरूचि बढ़ती है।
समीक्षा
वंदना, नमस्कार, आलाप, संलाप, दान एवं मान ये ऐसे कार्य हैं, जो एक गृहस्थ साधक के जीवन | के साथ जुड़े हुए हैं। आपस में नमन का व्यवहार सर्वत्र चलता है। इसी प्रकार सामाजिक जीवन में रहने वाले लोगों में परस्पर विविध विषयों पर चर्चा, वार्तालाप आदि होते रहते हैं। दान, सम्मान और सत्कार का भी व्यवहार है। इन कार्यों में सम्यक्त्वी को किस प्रकार वर्ताव करना चाहिए, यहाँ यह बतलाया गया है।
सम्यक्त्वी के जीवन के दो पक्ष हैं- एक आध्यात्मिक और दूसरा लौकिक या व्यावहारिक । सम्यक्त्व में, जो आध्यात्मिकता या धार्मिकता का मूल है, उनमें जरा भी दोष न आए, इस दिशा में एक सम्यक्त्वी को सदैव अत्यधिक यतनाशील, सावधान या जागरूक रहना चाहिए। उपर्युक्त कार्यों में जब भी वह प्रवृत्त हो, तब उसका पूरा ध्यान रहे कि उसका सम्यक्त्व जरा भी धूमिल न बने और मिथ्यात्व को उसके इन कार्यों से प्रश्रय प्राप्त न हो, इसलिए जहाँ भी इन कार्यों के करने का प्रसंग बने,
१. जिणधम्मो, पृष्ठ : ११५, ११६.
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