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________________ सिद्धत्व-पथ: राणस्थानमूलक सोपान-क्रम य संलापन र्तव्य है कि दे, उनका तु है। यह । जनों की स्वी और । दृष्टियों उसे उनको उसी रूप में करना चाहिए, जिससे उसका सम्यक्त्व उज्ज्वल, निर्मल और पवित्र बना रहे। वह मिथ्यात्वियों के साथ व्यावहारिक दृष्टि से संबंध रखे, उनको सहयोग करे, उनका अभिवादन करे. उसमें कोई बाधा नहीं है, किंतु वैसा करने में वह अध्यात्म या मोक्ष की आराधना न माने। मोक्षाराधना तो शुद्ध आत्म पक्ष के साथ जुड़ी हुई है। १०. छ: आगार - आगार जैन दर्शन का एक विशेष शब्द है। यह अपवाद या विकल्प का द्योतक है। सब साधकों में एक जैसा आत्मबल, धैर्य या पुरुषार्थ नहीं होता। कुछ ही साधक ऐसे होते हैं, जो अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी धर्म का पालन करते हैं। अपने द्वारा स्वीकार किए गए व्रतों का भलीभाँति पालन करते हैं। उसमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं आने देते, पर कुछ ऐसे होते हैं, जिनका आत्मबल इतना जागरित नहीं होता। वे अपने व्रत-पालन में कतिपय अपवाद या विकल्प स्वीकार करते हैं। अपवाद पर्वक या आगार युक्त स्थितियों के साथ लिए गए नियम, व्रत या आचार में यदि गृहीत विकल्प के अन्तर्गत यत्किंचित् भंग होता है तो वह दोषजनक नहीं माना जाता। सम्यक्त्व की आराधना में भी छ: आगार माने गए हैं। साधारणत: एक सम्यक्त्वी साधक का प्रयत्न तो यही होता है कि वह सर्वथा सम्यक्त्व की आराधना करता रहे, किंतु वैसा सामर्थ्य न होने पर उसके लिए निम्नलिखित छ: आगारों का प्रतिपादन किया गया है- १. राज्याभियोग, २. गणाभियोग, ३. बलाभियोग, ४. सूराभियोग, ५. वृत्तिकांतार तथा ६. गुरु-निग्रह । १. राज्याभियोग एक धार्मिक सम्यक्त्वी किसी भी राजा के राज्य में रहता है। उस राज्य पर राजा अथवा राज्याधिकारियों का शासन चलता है। राज्य के नागरिकों को उनकी आज्ञानुसार कार्य करना होता है। यदि वे वैसा न करें तो उनके प्राण एवं प्रतिष्ठा आदि की हानि का भय रहता है। किसी सम्यक्त्वी के जीवन में ऐसा विषम प्रसंग आ जाए, राजा या राज्याधिकारियों की ओर से हानि होने की आशंका पैदा हो जाए, उनसे वैसी धमकी मिल जाए, वे उसे सम्यक्त्व के विरुद्ध कार्य करने का आदेश दे तो राजा या अधिकारियों के अत्याचार से बचने के लिए वह खिन्न मन से, उदासीनता से सम्यक्त्व के प्रतिकूल आचरण करे तो उसका सम्यक्त्व भग्न- खंडित नहीं होता। ऐसा होने होता है, के जीवन तीवन में न और हाँ यह रिक। देशा में र्यों में ने और बने, २. गणाभियोग गण का अर्थ समूह या संघ होता है। संघ धार्मिक जनों का भी हो सकता है, राज्य का भी हो सकता है। जैसे भगवान् महावीर के समय उत्तर बिहार में कई गणराज्य थे, जो गणतंत्र कहे जाते थे। भगवान् महावीर का जन्म वज्जि- विदेह या लिच्छवि गणराज्य की राजधानी वैशाली के उपनगर 321
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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