SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कपथायणस्थानमूलकासापान-क्रम ण परम से प्राप्त स्थिरता स्वीकार किए गए सम्यक्त्व में स्थिर--दृढ़ रहना, धृतिशील- सहनशील रहना, औरों को स्थिर रखना बहत उत्तम है। यह सम्यक्त्व का आभरण है। कोई व्यक्ति सम्यक्त्व से च्यत हो रहा हो तो उसे धर्म में स्थिर रखना, यह सम्यक्त्व की शोभा है। IT परम *जाता भावना ५. भक्ति वीतराग प्रभु के शासन में, प्रवचन में, उपदेशों में साधु-साध्वी आदि गुणवान् सत्पुरुषों में तथा सम्यक्त्वी पुरुषों में, भक्ति, श्रद्धा या बहुमान रखना सम्यक्त्व का भूषण है। ८. सम्यक्त्व के पाँच लक्षण होता होता ३. असाधारण धर्म को लक्षण कहा जाता है। असाधारण उसे कहा जाता है, जो उसके अतिरिक्त औरों में नहीं मिलता। लक्षण से पदार्थ का बोध होता है, पहचान होती है। शम, संवेग, निर्वेद अनुकंपा, तथा आस्तिक्य- आस्था- ये सम्यक्त्व के पाँच लक्षण हैं। या तिक पक्ष १. शम सम्यक् दृष्टि के अत्यंत तीव्र अनंतानुबंधी क्रोध आदि कषायों का उपशम, क्षय या क्षयोपशम हो जाता है, उसके परिणामों में उग्रता नहीं रहती, उसे शम कहा जाता है। २. संवेग _____ सांसारिक, पौद्गलिक या भौतिक सुखों में रत- आसक्त न रहना, इन्द्रजालोपम क्षणभंगुर सांसारिक संपत्ति पर राग न रखना संवेग है। इससे सम्यक्त्वी में मानवीय और स्वर्गीय सुखों में आसक्ति नहीं रहती। मोक्षाभिलाषा मन में समुदित रहती है, तदर्थ वह अध्यवसायशील रहता है। माने ches ३. निर्वेद सम्यक्त्वी में आरंभ-परिग्रह के प्रति आकर्षण नहीं रहता, क्योंकि वह इनको अनर्थ का हेतु समझता है। इनसे निवृत्त होने की उसमें सदा अभिलाषा बनी रहती हैं। संसार से वैराग्य एवं औदासीन्य भाव उसमें व्याप्त रहता है। ४. अनुकंपा सम्यक्त्वी के अंत:करण में अनुकंपा- दया का भाव विद्यमान रहता है। अनुकंपा से परिव्याप्त हृदय में ही धर्म का पौध अंकुरित होता है। 317
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy