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णमो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक अनुशीलन
काव्य से यश, अर्थ एवं व्यवहार ज्ञान प्राप्त होता है अकल्याण का नाश होता है, तत्क्षण परम आनंद की प्राप्ति होती है तथा वैसा प्रिय और मनोहर उपदेश मिलता है, जैसा कांता के वचन से प्राप्त होता है।
आचार्य मम्मट की इस कारिका से प्रकट होता है कि काव्य लौकिक लाभ के अतिरिक्त वैसा परम | आनंद भी प्राप्त कराता है, जो आध्यात्मिकता से प्राप्त होता है । काव्य द्वारा जो संदेश दिया जाता . यह खाली नहीं जाता है। कवित्व शक्ति का धर्म की प्रभावना में उपयोग करना, कवित्व-प्रभावना 181
७. सम्यक्त्व के भूषण
भूषण का अर्थ अलंकार, आभूषण या गहना है । जिस प्रकार शरीर आभूषणों से सुंदर प्रतीत होता । है, उसी प्रकार जिन गुणों से सम्यक्त्वी की विशेषताओं से सम्यक्त्व और धर्म भूषित, सुशोभित होता है, वे सम्यक्त्व के गुण बतलाए गए हैं। वे पाँच है- १. जिनशासन में कुशलता, २ प्रभावना, ३. तीर्थ सेवा, ४. स्थिरता और ५. भक्ति ।
१. जिन शासन में कुशलता
कुशल का अर्थ प्रवीण या निपुण है । यदि सम्यक्त्वी पुरुष धर्म के सिद्धांतों में कुशल, निपुण या प्रवीण होता है तो उसका सम्यक्त्व सुशोभित होता है, क्योंकि वह अपनी प्रवीणता या सैद्धांतिक निपुणता के कारण विरोधियों के कुतर्कों का खंडन कर सकता है। अपने प्रबल तर्कों द्वारा सत्य पक्ष की स्थापना कर सकता है। अपनी तात्त्विक योग्यता के कारण स्वयं समझने में तथा दूसरों को समझाने में सक्षम होता है। इससे उसका सम्यक्त्व सुशोभित होता है, अन्य लोगों को भी प्रभावित करता है।
२. प्रभावना
पहले आठ प्रभावना का वर्णन किया जा चुका है। प्रभावना एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। इसलिए उसे सम्यक्त्व के पाँच भूषणों में दूसरे भूषण के स्थान पर भी रखा गया है।
३. तीर्थ सेवा
अन्य प्रसंगों पर यथास्थान तीर्थ शब्द का विश्लेषण करते हुए साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ की चर्चा की है, जिसे तीर्थ कहा जाता है। इन सबको धर्माराधना के पावन कृत्य सहयोग करना, इनकी सेवा करना, आदर करना, सम्यक्त्वी का अलंकरण है में
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कारिका - २.
१. काव्य प्रकाश, प्रकाश १,
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