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________________ णमो सिद्धाणं पद: समीक्षात्मक अनुशीलन कर्म-पद्गल रोकते हैं, वे आयुष्य-कर्म कहलाते हैं। इनका क्षय होने से आत्मा का अटल-अवगाहन व्यक्त होता है। ६. नाम-कर्म आत्मा का छठा गुण अमूर्त्तत्त्व है। जो कर्म पुद्गल उसको रोकते हैं, वे नाम-कर्म कहे जाते हैं। नाम-कर्म के उदय से शरीर प्राप्त होता है। शरीर स्थित अमूर्त आत्मा भी मूर्त्त शरीर के कारण मूर्त सी प्रतीत होती है। उसका क्षय होने से आत्मा का अमूर्त्तत्त्व प्रकट होता है। ७.गोत्र-कर्म अगुरु लघुत्व आत्मा का सातवाँ गुण है, क्योंकि आत्मा न बड़ी और न छोटी है। इस गुण को रोकने वाले कर्म-पद्गल गोत्र-कर्म कहलाते हैं। उसका क्षय होने से आत्मा का अमूर्त्तत्व उद्घाटित होता है। ८. अंतराय-कर्म आत्माश्रय का आठवां गुण लब्धि है। जो कर्म पुद्गल उसको रोकते हैं, वे अंतराय-कर्म कहलाते। हैं। उसका क्षय होने से लब्धि या लाभ में होने वाले विन दूर हो जाते हैं। घाति-अघाति कर्म आत्मा के साथ संश्लिष्ट होने वाले कर्म-पुद्गलों को दो भागों में विभक्त किया गया है, जो घाति-कर्म और अघाति-कर्म कहलाते हैं। जो कर्म पुद्गल आत्मा के मुख्य या मूल गुणों का घात करते हैं, आवरण करते हैं, उनको घाति-कर्म कहा जाता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय तथा अंतराय- ये चार घाति-कर्म हैं। इनका क्षय या मूलोच्छेद होने से ही आत्मा सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बन सकती है। जो कर्म आत्मा के मुख्य या मूलगुणों का घात नहीं करते, वे अघाति कर्म कहलाते हैं। घाति-कर्मों के नष्ट हो जाने पर ये कर्म पनपते नहीं, उसी जन्म में क्षीण हो जाते हैं। वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र-ये चार अघाति कर्म हैं। ये आठ कर्म आत्मा के शुद्ध स्वरूप को आवृत्त किए रहते हैं। जब तक ये क्षीण नहीं होते तब तक आत्मा अपने स्वरूप का साक्षात्कार नहीं कर पाती । जब इन आठों कर्मों का संपूर्णत: क्षय हो जाता है, आत्मा अपनी परम शुद्धावस्था को स्वायत्त कर लेती है। शुद्धावस्था ही सिद्धावस्था है। .. १. जीव-अजीवं, पृष्ठ : ४८,४९. २. नीति दीपक शतक, प्रकरण-३, श्लोक-९,१०. 299
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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