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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन । उनमें 'अ' वर्ण मंत्र पदों के आदिश्वर श्री अरिहंत के नाम का वाचक है। वह मोक्ष-मार्ग में दीपक के तुल्य है। अर्थात् जैसे मार्ग में चलते हुए पथिक को दीपक का प्रकाश अंधकार-युक्त मार्ग | में भी चलने में एक आलंबन रहता है, उसी प्रकार मोक्ष के साधना-पथ पर चलने वाले साधक के लिए, यह वर्ण प्रेरणादायक है। 'अ वर्ण का नाभि-पद्म में स्मरण करें। इसी प्रकार 'सि' वर्ण का मस्तक-कमल- ब्रह्म-रंध्र में, 'सा' वर्ण का मुख-कमल में, 'आ' वर्ण का कंठ-पद में तथा 'उ' वर्ण का हृदय-कमल में ध्यान करें। यह मंत्रों का राजा है। मंत्रों में श्रेष्ठ है। यह अनेक प्रकार के अभीष्टों को प्राप्त कराता है तथा अनिष्टों को शांत करता है। वह मंत्र इस प्रकार है- अ-सि-आ-उ-सा। । यहाँ ग्रंथकार ने 'अ' एवं 'सि' वर्ण के पश्चात् 'सा' वर्ण को लिया है। 'सा' वर्ण साधु का सूचक है, जो णमोक्कार में पंचम पद में अवस्थित है। मंत्र के क्रमानुसार 'आ' और 'उ' क्रमागत हैं, तदनंतर 'सा' का स्थान आता है। ऐसा अनुमान होता है कि ग्रंथकार ने यह सोचकर कि आचार्य, उपाध्याय तो साधुओं में से ही होते हैं, साधुत्व की पृष्ठभूमि पर ही तो आचार्य और उपाध्याय-पद अवस्थित हैं। अत: मंत्र में क्रम को न बदलते हुए उन्होंने व्याख्या में उनके क्रम को इस रूप में परिवर्तित किया हो। मंत्र में तो क्रम नहीं बदला जाता, ऐसा करना दोष है, क्योंकि मंत्र का वर्ण-क्रम पूर्व-परंपरा से प्राप्त है। | जैसा संकेत किया गया है- सिद्ध-चक्र की अंतर्वर्तिनी विद्याएँ और तद्गत मंत्र विद्या-प्रवाद-पूर्व से लिए गए हैं। पूर्व-ज्ञान आप्त पुरुषों की परंपरा से प्राप्त माना जाता है। अत: वहाँ कुछ भी परिवर्तनीय नहीं है। | ग्रंथकार ने यहाँ इस मंत्र के जप के दो फल बताएं हैं। अभीष्ट-प्राप्ति तथा अनिष्ट-शांति। मोक्षार्थी का अभीष्ट मोक्ष, निर्वाण या सिद्धत्व-प्राप्ति है। यही उसका अंतिम लक्ष्य है। इस साधना में जो विघ्न-बाधाएं, परिषह, उपसर्ग आदि आते हैं, वे सब अनिष्ट हैं। आत्म-साधक की दृष्टि से यहाँ मोक्ष एवं तद्बोधक विघ्न-नाश का ही अभिप्राय है। | जिनका चिंतन सांसारिक दृष्टिकोण पर आधारित होता है, वे उसको भौतिक अभीप्साओं की पूर्ति तथा उनकी प्राप्ति में होने वाले विनों की शांति में लेते हैं। ___ अपने-अपने पृथक्-पृथक् दृष्टिकोण होते हैं। उनके अनुसार शब्दों के अर्थ को खींचा जा सकता है। 'शब्दा: कामदुधाः' - ऐसा कहा गया है। अर्थात् जैसे कामधेनु सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है, १. तत्त्वार्थसार दीपक, श्लोक-१३६-१४० : नमस्कार-स्वाध्याय (संस्कृत विभाग), पृष्ठ : ७२. 291
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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